सुप्रीम कोर्ट ने 3.50 लाख करोड़ रुपए की बिना दावे वाली फाइनेंशियल एसेट्स (वित्तीय संपत्तियों) को लेकर बड़ा कदम उठाया है। सोमवार को कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), मार्केट रेगुलेटर SEBI और इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI सहित कई नियामक संस्थाओं से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की गई है कि ऐसा सिस्टम बनाया जाए जिससे ये रकम असली मालिकों या उनके वारिसों तक वापस पहुंचाई जा सके। इस याचिका में एक सेंट्रल पोर्टल बनाने का सुझाव भी दिया गया है, जहां लोग अपनी सभी वित्तीय संपत्तियों की जानकारी एक ही जगह पा सकें - चाहे वो एक्टिव हो, निष्क्रिय हों या सालों से बिना किसी दावे के पड़ी हों। ये पोर्टल RBI, SEBI और IRDAI के अधीन आने वाली सभी संस्थाओं से जुड़ी जानकारी को एक जगह लाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बैंकों और वित्तीय संस्थानों में पड़ी 3.50 लाख करोड़ रुपए की बिना दावे वाली संपत्तियों के मामले को गंभीरता से लिया है। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मुद्दे पर कई संस्थाओं को नोटिस भेजा है, जिनमें नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट, EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन), पेंशन फंड नियामक संस्था PFRDA और उपभोक्ता मामले मंत्रालय शामिल हैं।
याचिका किसने और क्यों दायर की?
यह याचिका एक सामाजिक कार्यकर्ता आकाश गोयल ने दायर की है। उन्होंने बताया कि बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों में हजारों करोड़ रुपए की संपत्तियां बिना किसी दावे के पड़ी हुई हैं। इनमें इनएक्टिव बैंक अकाउंट, म्यूचुअल फंड यूनिट्स, बिना दावा किए गए डिविडेंड और भविष्य निधि (PF) जैसी चीजें शामिल हैं। इन सभी संपत्तियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये देश के अलग-अलग संस्थानों में बिखरी पड़ी हैं और इनका कोई एकसाथ रिकॉर्ड नहीं है। मतलब यह कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उनके परिवार को जानकारी नहीं है, तो उस संपत्ति को खोजना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
गोयल ने कोर्ट से मांग की है कि एक केंद्रीकृत (सेंट्रलाइज्ड) पोर्टल बनाया जाए, जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने सभी वित्तीय खातों की स्थिति देख सके - चाहे वो चालू हो, इनएक्टिव हो या पूरी तरह से भूल चुके हों। यह पोर्टल RBI, SEBI, IRDAI जैसी सभी रेगुलेटरी संस्थाओं से जुड़ी जानकारी एक जगह दिखाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि हर वित्तीय संपत्ति के साथ नॉमिनी की जानकारी देना अनिवार्य बनाया जाए। इससे अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो उसके कानूनी वारिस को संपत्ति आसानी से मिल सके।
9 करोड़ से ज्यादा इनएक्टिव अकाउंट
गोयल के अनुसार, देशभर में 9.22 करोड़ बैंक अकाउंट इनएक्टिव पड़े हैं, जिनमें औसतन 3,918 रुपए हर अकाउंट में जमा है। ये छोटा-छोटा अमाउंट मिलकर हजारों करोड़ की हो जाता है, जो न तो उनके असली मालिकों को मिल रही हैं और न ही अर्थव्यवस्था में इस्तेमाल हो पा रही हैं। गोयल ने इन संपत्तियों को 'फंसी हुई दौलत' (ट्रैप्ड वेल्थ) बताया है। उनका कहना है कि यह पैसा उस व्यक्ति या उसके परिवार के किसी काम का नहीं रह गया है और सरकार या बैंक भी इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। एक मजबूत सिस्टम बनाकर इसे समाज और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद बनाया जा सकता है।
कोर्ट में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ वकील मुक्ता गुप्ता ने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही इस मामले की गंभीरता को समझ चुका है, लेकिन इसके बावजूद सरकार और संबंधित संस्थाओं ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। हाई कोर्ट ने माना था कि यह एक बड़ा और गंभीर मुद्दा है, लेकिन समाधान की जिम्मेदारी सरकारी संस्थाओं पर छोड़ दी थी कि वे कोई नीति (पॉलिसी) बनाएं। लेकिन मुक्ता गुप्ता ने कोर्ट में कहा कि अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और लाखों आम लोगों की जमा रकम अभी भी बैंकों और बीमा कंपनियों में फंसी हुई है।
याचिकाकर्ता ने अब सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि वह सरकार और नियामक संस्थाओं को निर्देश दे कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जो मृत खाताधारकों या संपत्ति मालिकों की जानकारी समय रहते सभी संस्थाओं तक पहुंचा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बैंकों और वित्तीय संस्थानों में पड़ी 3.50 लाख करोड़ रुपए की बिना दावे वाली संपत्तियों के मामले को गंभीरता से लिया है। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मुद्दे पर कई संस्थाओं को नोटिस भेजा है, जिनमें नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट, EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन), पेंशन फंड नियामक संस्था PFRDA और उपभोक्ता मामले मंत्रालय शामिल हैं।
याचिका किसने और क्यों दायर की?
यह याचिका एक सामाजिक कार्यकर्ता आकाश गोयल ने दायर की है। उन्होंने बताया कि बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों में हजारों करोड़ रुपए की संपत्तियां बिना किसी दावे के पड़ी हुई हैं। इनमें इनएक्टिव बैंक अकाउंट, म्यूचुअल फंड यूनिट्स, बिना दावा किए गए डिविडेंड और भविष्य निधि (PF) जैसी चीजें शामिल हैं। इन सभी संपत्तियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये देश के अलग-अलग संस्थानों में बिखरी पड़ी हैं और इनका कोई एकसाथ रिकॉर्ड नहीं है। मतलब यह कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उनके परिवार को जानकारी नहीं है, तो उस संपत्ति को खोजना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
गोयल ने कोर्ट से मांग की है कि एक केंद्रीकृत (सेंट्रलाइज्ड) पोर्टल बनाया जाए, जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने सभी वित्तीय खातों की स्थिति देख सके - चाहे वो चालू हो, इनएक्टिव हो या पूरी तरह से भूल चुके हों। यह पोर्टल RBI, SEBI, IRDAI जैसी सभी रेगुलेटरी संस्थाओं से जुड़ी जानकारी एक जगह दिखाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि हर वित्तीय संपत्ति के साथ नॉमिनी की जानकारी देना अनिवार्य बनाया जाए। इससे अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो उसके कानूनी वारिस को संपत्ति आसानी से मिल सके।
9 करोड़ से ज्यादा इनएक्टिव अकाउंट
गोयल के अनुसार, देशभर में 9.22 करोड़ बैंक अकाउंट इनएक्टिव पड़े हैं, जिनमें औसतन 3,918 रुपए हर अकाउंट में जमा है। ये छोटा-छोटा अमाउंट मिलकर हजारों करोड़ की हो जाता है, जो न तो उनके असली मालिकों को मिल रही हैं और न ही अर्थव्यवस्था में इस्तेमाल हो पा रही हैं। गोयल ने इन संपत्तियों को 'फंसी हुई दौलत' (ट्रैप्ड वेल्थ) बताया है। उनका कहना है कि यह पैसा उस व्यक्ति या उसके परिवार के किसी काम का नहीं रह गया है और सरकार या बैंक भी इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। एक मजबूत सिस्टम बनाकर इसे समाज और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद बनाया जा सकता है।
कोर्ट में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ वकील मुक्ता गुप्ता ने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही इस मामले की गंभीरता को समझ चुका है, लेकिन इसके बावजूद सरकार और संबंधित संस्थाओं ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। हाई कोर्ट ने माना था कि यह एक बड़ा और गंभीर मुद्दा है, लेकिन समाधान की जिम्मेदारी सरकारी संस्थाओं पर छोड़ दी थी कि वे कोई नीति (पॉलिसी) बनाएं। लेकिन मुक्ता गुप्ता ने कोर्ट में कहा कि अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और लाखों आम लोगों की जमा रकम अभी भी बैंकों और बीमा कंपनियों में फंसी हुई है।
याचिकाकर्ता ने अब सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि वह सरकार और नियामक संस्थाओं को निर्देश दे कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जो मृत खाताधारकों या संपत्ति मालिकों की जानकारी समय रहते सभी संस्थाओं तक पहुंचा सके।
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