पेटीएम (Paytm) की मूल कंपनी वन97 कम्युनिकेशंस (One97 Communications), इसके फाउंडर विजय शेखर शर्मा और उनके भाई अजय शर्मा ने पूंजी बाजार नियामक सेबी के साथ 2.79 करोड़ रुपये का सेटलमेंट किया है. यह समझौता प्रमोटर की श्रेणी में गलत जानकारी देने और सेबी नियमों के उल्लंघन को लेकर किया गया है.दरअसल, जब पेटीएम ने अपना आईपीओ लॉन्च किया था, तब विजय ने खुद को प्रमोटर नहीं, बल्कि नॉन-प्रमोटर के तौर पर प्रस्तुत किया था. इसके चलते उन्हें कंपनी द्वारा ESOP (Employee Stock Option) दिए गए, जबकि नियमानुसार प्रमोटर्स को ESOP देने की अनुमति नहीं होती. विजय और अजय ने छोड़े ESOP, तीन साल तक नहीं लेंगे नया स्टॉक विकल्पसमझौते के तहत विजय शेखर शर्मा ने 2.1 करोड़ ESOPs सरेंडर किए हैं जो उन्हें 2019 में दिए गए थे. वहीं उनके भाई अजय शर्मा ने भी 2.25 लाख ESOPs छोड़े हैं. इसके अतिरिक्त विजय ने अगले तीन वर्षों तक किसी भी नए ESOP को न लेने का वचन दिया है, जबकि अजय शर्मा ने 35 लाख रुपये की राशि सेबी को चुकाई है.One97 ने 16 अप्रैल 2025 को स्टॉक एक्सचेंजों को जानकारी दी कि शाम 5:05 बजे से 5:18 बजे तक आयोजित बोर्ड मीटिंग में विजय ने स्वेच्छा से ESOPs छोड़ने का निर्णय लिया, जिसे कंपनी की नॉमिनेशन एंड रिम्यूनरेशन कमेटी (NRC) ने स्वीकार करते हुए इन ESOPs को रद्द कर दिया है.कंपनी ने बताया कि ESOP त्यागने से FY25 की चौथी तिमाही में 492 करोड़ रुपये की एकमुश्त, नकद रहित (non-cash) ESOP लागत दर्ज की जाएगी. यह भविष्य में ESOP से जुड़ी लागत को कम करेगा. छोड़े गए ESOPs को One97 की ESOP योजना 2019 के अंतर्गत फिर से ESOP पूल में जोड़ दिया गया है. प्रमोटर क्लासिफिकेशन को लेकर सेबी की आपत्तियह मामला मूल रूप से इस बात पर था कि क्या विजय शेखर शर्मा को पेटीएम के आईपीओ दस्तावेजों में प्रमोटर के रूप में दिखाया जाना चाहिए था. 2021 में विजय की कंपनी में हिस्सेदारी 14.7% थी, लेकिन उन्होंने एक्सिस ट्रस्टी सर्विसेज के माध्यम से 3.09 करोड़ शेयर शर्मा फैमिली ट्रस्ट को ट्रांसफर कर हिस्सेदारी 10% से नीचे कर ली, जिससे वे ESOP के पात्र बन सके.सेबी ने इस बात पर भी सवाल उठाया था कि उस समय के स्वतंत्र निदेशकों ने विजय की ‘नॉन-प्रमोटर’ स्थिति को समर्थन क्यों दिया. कानूनी प्रतिनिधित्व और समझौते की प्रक्रियावन97 की ओर से फिनसेक लॉ एडवाइजर्स ने केस का प्रतिनिधित्व किया, जबकि विजय और अजय शर्मा की ओर से रेगस्ट्रीट लॉ ने सेबी के समक्ष दलीलें दीं. यह पूरा मामला सेबी के सेटलमेंट मैकेनिज्म के तहत सुलझाया गया, जहां बिना किसी दोष को स्वीकार किए संबंधित पक्ष वित्तीय राशि चुकाकर या सुधारात्मक कदम उठाकर मामला समाप्त कर सकते हैं.(अस्वीकरण: विशेषज्ञों द्वारा दी गई सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स हिन्दी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं)
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