
'फ़ूड नॉइज़' कोई नया आइडिया नहीं है.
लेकिन इस शब्द ने 2023 में ज़ोर पकड़ना शुरू किया.
उसी साल ब्रिटेन में वज़न घटाने के लिए जीएलपी-1 इंजेक्शन बाज़ार में लॉन्च हुआ था.
इसके बारे में दावा किया गया कि यह लोगों के दिमाग में खाने को लेकर चलने वाली लगातार बातों और उलझनों को शांत करने में मदद कर सकता है.
इसके बाद 'फ़ूड नॉइज़' शब्द चर्चा में आ गया और इस पर गंभीरता से बातचीत शुरू हुई.
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मनोवैज्ञानिक और डिसऑर्डर इटिंग स्पेशलिस्ट डॉ. शेरलट ऑर्ड कहती हैं, "ऐतिहासिक तौर पर हम 'फ़ूड नॉइज़' का मतलब 'भोजन की चिंता', 'भोजन को लेकर जुनून', 'इच्छा' या 'असामान्य भोजन से जुड़ी सोच' से लगाते रहे हैं."
वो कहती हैं, "इसका मतलब है - लगातार खाने के बारे में सोचते रहना."
जैसे हर समय यह सोचना कि अब क्या खाना है, क्या नहीं खाना, या डाइटिंग से जुड़ी बातें मन में चलना. इसमें यह विचार भी हो सकता है कि किस तरह के भोजन से बचना है, या खाने को लेकर सख़्त नियम बना लेने चाहिए.
डॉ. ऑर्ड कहती हैं, "मेरे लिए यह डाइट कल्चर के संदेशों और खुद डाइटिंग की प्रक्रिया से गहराई से जुड़ा है. इससे हमारा ध्यान बार-बार खुद को पोषण देने की ज़रूरत पर चला जाता है, भले ही हमारे आस-पास भोजन की कोई कमी न हो."
भोजन के बारे में सोचना बिल्कुल सामान्य बात है. हम में से ज़्यादातर लोग यह सोचते हैं कि रात के खाने में क्या बनाना है.
डॉ. ऑर्ड कहती हैं, "फ़ूड नॉइज़ लगातार और बाधित करने वाला होता है. यह तब भी दिमाग में आता है जब आपको भूख नहीं होती. कभी-कभी तब भी जब पेट भरा होता है. और यह आमतौर पर भावनात्मक रूप से बहुत गहराई से जुड़ा होता है."
उनका कहना है, "यह अपराधबोध, जुनून या खाने से जुड़ी सोच के कारण भी हो सकता है. यह हमारी जीवनशैली को प्रभावित करता है. लेकिन भोजन को लेकर आने वाले सामान्य विचारों से ऐसा असर नहीं होता."
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डॉ. ऑर्ड कहती हैं, "जो व्यक्ति फ़ूड नॉइज़ से जूझ रहा होता है, वह अक्सर विचलित रहता है. उसका काम पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता और वह अपने करीबी लोगों के बीच भी पूरी तरह मौजूद रहने में कठिनाई महसूस करता है."
ऐसे लोग अपने भोजन के चयन को लेकर ज़रूरत से ज़्यादा सोच सकते हैं.
वे खुद से बार-बार सवाल करते हैं "क्या मुझे यह खाना चाहिए? क्या इसे खाने के बाद मुझे बुरा लगेगा? क्या यह सेहतमंद है? क्या मुझे एक और लेना चाहिए?"
वे अक्सर अपने खाने के फैसलों को लेकर अपराधबोध, शर्मिंदगी और चिंता महसूस करते हैं. यह व्यवहार आमतौर पर असामान्य खाने की आदतों और शरीर के आकार व वज़न से जुड़ी सोच से संबंधित होता है.
कभी-कभी यह सिलसिला व्यायाम से भी जुड़ जाता है, जहां फिटनेस पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है या खाने और ट्रेनिंग को लेकर सख़्त नियम बनाए जाते हैं. ऐसी परिस्थितियों में भी फ़ूड नॉइज़ के लक्षण दिख सकते हैं.
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जनरल प्रैक्टिशनर और 'फ़ूड नॉइज़' किताब के लेखक डॉ. जैक मॉस्ले कहते हैं कि वज़न घटाने वाली दवाएं दो तरीकों से असर करती हैं.
वह बताते हैं, "हम कब और कितना खाना खाते हैं, यह दो बातों पर निर्भर करता है. पहली बात है कि जब हमने तीन-चार घंटे तक कुछ नहीं खाया होता, तो शरीर अगला भोजन मांगता है. और दूसरी है हमें खाने के ख़्याल भर से से खुशी मिलती है."
डॉ. मॉस्ले कहते हैं, "वज़न घटाने वाली दवाएं इन दोनों ही पहलुओं पर असर डालती हैं. ये भूख को शरीर और दिमाग दोनों स्तर पर कम करती हैं. साथ ही यह उस प्रवृत्ति को भी नियंत्रित करती हैं जो सिर्फ खुशी के लिए खाने की ओर प्रेरित करती है."
वह बताते हैं, "ये दवाएं डोपामिन की सक्रियता को कम कर देती हैं. इससे खाने को लेकर उत्साह और उम्मीद जैसी भावनाएं नियंत्रित होने लगती हैं."
डॉ. मॉस्ले एक उदाहरण देते हैं, "कल्पना कीजिए कि आप पेट्रोल पंप पर हैं और वहां अपनी पसंदीदा मिठाई या स्नैक्स देखते हैं. आप उन्हें खरीदने का मन बनाते हैं, या फास्ट फूड की खुशबू से आपके भीतर खाने की तीव्र इच्छा जागती है. लेकिन जब आप यह दवा लेते हैं, तो ऐसी इच्छाएं या तो कम हो जाती हैं, या फिर थोड़ी-सी मात्रा से ही संतोष मिल जाता है."
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डॉ. मॉस्ले वज़न घटाने वाले इंजेक्शनों की तुलना नॉइज़-कैंसलिंग हेडफोन से करते हैं.
उनका कहना है, "जब आप इसे लेते हैं तो दिनभर बिना 'फ़ूड नॉइज़' से परेशान हुए अपना काम कर सकते हैं."
रिसर्च बताती है कि जब लोग इन नई दवाओं का इस्तेमाल बंद कर देते हैं, तो वे पहले साल के भीतर अपने घटाए गए वज़न का लगभग दो-तिहाई हिस्सा फिर से बढ़ा लेते हैं. और करीब 20 महीनों में उनका पूरा वज़न वापस लौट सकता है.
इसीलिए मॉस्ले कहते हैं कि अगर आप वज़न घटाने की दवा ले रहे हैं, तो यह ज़रूरी है कि उसी दौरान अपनी जीवनशैली में ऐसे बदलाव करें जिन्हें लंबे समय तक अपनाया जा सके. ऐसी स्वस्थ खाने की आदतें विकसित करें जो दवा के बिना भी बनी रहें.
ऑर्ड और मॉस्ले 'फ़ूड नॉइज़' की तीव्रता कम करने के लिए कुछ व्यावहारिक उपाय भी सुझाते हैं.
डॉ. मॉस्ले कहते हैं, "हर हफ्ते एक बार ज़रूरी खाने-पीने की चीज़ें ख़रीद लीजिए और पूरे सप्ताह का भोजन पहले से प्लान कर लीजिए. इससे जब आप तनाव में हों, तब भी पुराने खाने की आदतों में लौटने से बचा जा सकेगा."
डॉ. ऑर्ड सलाह देती हैं, "हर कुछ घंटों पर नियमित और संतुलित भोजन करें, ताकि हार्मोन का स्तर स्थिर बना रहे. भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट का संतुलन होना चाहिए, जिससे भूख नियंत्रित रहे. कभी भी खाना न छोड़ें."
वह यह भी जोड़ती हैं कि मेडिटेरेनियन शैली का भोजन फ़ूड नॉइज़ को काबू में रखने में सहायक हो सकता है, क्योंकि इसमें प्रोटीन, हेल्दी फैट, फाइबर और जटिल कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होते हैं.
डॉ. मॉस्ले कहते हैं, "इच्छाशक्ति को अक्सर ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दी जाती है. यानी खुद को नियंत्रण में रखने की बात की जाती है. लेकिन जब हम खाने को देखते हैं, तो उसे खाने की इच्छा होना स्वाभाविक है. इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने किचन या अलमारी से ऐसे खाद्य पदार्थ हटा दें जिनकी लत लग सकती है, और उनकी जगह संपूर्ण खाद्य पदार्थ रखें."
हालांकि अगर आप कभी-कभी कोई हाई-कैलोरी चीज़, जैसे चॉकलेट बार खा लेते हैं, तो खुद को दोष न दें. इसका मतलब यह नहीं कि आप 'फ़ूड नॉइज़' को नियंत्रित करने में असफल रहे हैं.
डॉ. ऑर्ड कहती हैं, "खाने को लेकर बहुत ज़्यादा पाबंदियां नहीं होनी चाहिए. 'ये अच्छा खाना है', 'ये बुरा है', या 'ये नहीं खाना चाहिए' जैसी सोच भी फ़ूड नॉइज़ को उतना ही बढ़ा सकती है जितना ऐसा खाना खाना. जब हमारा दिमाग किसी चीज़ को 'वर्जित' मानता है, तो वह उसे ख़तरे की तरह देखता है — और उसी पर बार-बार ध्यान जाता है."
वह यह भी कहती हैं कि खाने को लेकर हम किस तरह की भाषा इस्तेमाल करते हैं, उस पर भी ध्यान देना ज़रूरी है. जैसे — "यह खाना सेहतमंद नहीं है", "मुझे स्नैक्स नहीं लेने चाहिए" जैसे विचारों को पहचानकर उन्हें पीछे छोड़ने की ज़रूरत है. ऐसी सोच खाने में पाबंदी को बढ़ावा देती है और अंत में फ़ूड नॉइज़ को और ज़्यादा बढ़ाती है.
डॉ. मॉस्ले कहते हैं, "तनाव फ़ूड नॉइज़ को बढ़ाता है. यह क्रेविंग्स और ज़्यादा खाने की प्रवृत्ति को भी बढ़ा सकता है. इसलिए ऐसे तरीके खोजिए जो तनाव को दूर करें — लेकिन खाना इसका ज़रिया न हो. यह एक्सरसाइज़ हो सकती है, ध्यान, या कोई ऐसा शौक जो आपको अच्छा लगता हो. इससे बड़ा फ़र्क पड़ सकता है."
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डॉ. ऑर्ड कहती हैं, "फ़ूड नॉइज़ का अनुभव करना इस बात का संकेत नहीं है कि आपके भीतर कोई कमी है और न ही यह हमेशा बना रहता है."
वह कहती हैं, "फ़ूड नॉइज़ यह दिखाता है कि आपका मस्तिष्क वही कर रहा है, जिसके लिए वह बना है — यानी आपको सुरक्षित रखने की कोशिश. जब मस्तिष्क को लगता है कि भोजन की कमी हो सकती है, या जब वह केवल भोजन के ज़रिए ही तनाव को शांत करना जानता है, तो वह ध्यान भोजन की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित करता है."
डॉ. ऑर्ड का मानना है कि फ़ूड नॉइज़ से उबरने का मतलब है भोजन के साथ अपने रिश्ते को दोबारा समझना.
इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपनी भावनात्मक ज़रूरतों को पहचानें और ऐसे तरीके अपनाएं जो केवल खाने पर निर्भर न हों, बल्कि आपको दूसरे माध्यमों से भी मानसिक और शारीरिक पोषण दे सकें.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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