अगली ख़बर
Newszop

बिहार चुनाव: क्या महिलाएं चुनाव नतीजों की दिशा बदलने वाली 'साइलेंट फ़ोर्स' बन रही हैं

Send Push
Getty Images बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान पटना वीमेंस कॉलेज स्थित एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के बाद सेल्फी लेतीं वोटर्स

बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण समाप्त हो चुका है और अब यह चुनाव अपने अंतिम दौर में है. अब सभी की नज़रें इस बात पर टिक गई हैं कि इस बार जनता किस पर भरोसा जताएगी.

पहले चरण में 121 सीटों पर 64.66 फ़ीसदी मतदान दर्ज हुआ है, जिसे रिकॉर्ड माना जा रहा है. इस रिकॉर्ड वोटिंग का संकेत क्या है? क्या ये बदलाव की तरफ़ इशारा है या फिर वर्तमान सत्ता पर दोबारा भरोसा जताने की इच्छा? इस पर अलग-अलग दावे सामने आ रहे हैं.

इस चुनाव में रोज़गार और पलायन का मुद्दा सबसे ज़्यादा गूंजा. साथ ही 'जंगलराज' की याद दिलाकर वोटरों में डर या असुरक्षा का नैरेटिव बनाने की कोशिश भी दिखाई दी.

अब बड़ा सवाल ये है कि इस अधिक मतदान का मतलब क्या निकाला जाए? बिहार का वोटर किस मुद्दे को ज़्यादा प्राथमिकता दे रहा है- क़ानून व्यवस्था, विकास, नौकरी, या कुछ और?

क्या महिलाएं इस बार चुनाव के परिणाम की दिशा बदलने वाली साइलेंट फ़ोर्स बन रही हैं? और क्या सच में ग्राउंड पर नीतीश कुमार की साख को लेकर उतनी ही चुनौती महसूस हो रही है जितनी सोशल मीडिया पर नज़र आती है?

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.

इन्हीं सवालों पर चर्चा के लिए पत्रकार और लेखिका रूही तिवारी, सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख, बीबीसी भारतीय भाषाओं की डिजिटल वीडियो एडिटर सर्वप्रिया सांगवान और बीबीसी न्यूज़ हिन्दी के एडिटर नितिन श्रीवास्तव शामिल हुए.

  • बिहार विधानसभा चुनाव: ओवैसी इस बार सीमांचल में अपना करिश्मा दिखा पाएँगे?
  • बिहार विधानसभा चुनाव: छिटपुट घटनाओं के बीच पहले चरण का मतदान ख़त्म, 64.66 प्रतिशत हुई वोटिंग
  • तेज प्रताप से क्या आरजेडी को कुछ सीटों पर नुक़सान हो सकता है?
रिकॉर्ड वोटिंग के क्या हैं मायने? image Getty Images दानापुर के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए कतार में खड़ी महिलाएं

बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान के बाद 'रिकॉर्ड टर्नआउट' की चर्चा तेज़ है. लेकिन क्या ज़्यादा वोटिंग हमेशा सत्ता बदलाव या सत्ता वापसी का संकेत देती है?

साल, 1951-52 से 2020 तक हुए बिहार विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत केवल तीन बार ही 60 प्रतिशत से अधिक रहा.

2025 विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बिहार की कुल 243 सीटों में से 18 ज़िलों की 121 सीटों पर 64.66 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया.

सी-वोटर के फ़ाउंडर यशवंत देशमुख ने इस पर कहा कि पिछले 10-15 सालों के चुनावी इतिहास में ऐसा कोई तय पैटर्न देखने को नहीं मिला है.

उन्होंने बताया, "रिकॉर्ड मतदान में भी प्रो और एंटी इंकम्बेंट दोनों मिल चुके हैं और बहुत कम मतदान में भी प्रो व एंटी इंकम्बेंट दोनों देखने को मिले हैं. इसलिए इसे उसी एंगल से नहीं देखना चाहिए."

यशवंत देशमुख ने कहा कि पहले चरण के आंकड़ों में एक बात साफ़ दिख रही है कि पुरुषों के मुक़ाबले लगभग 8 फ़ीसदी ज़्यादा महिलाओं ने वोट किया है.

image BBC

देशमुख के मुताबिक़ महिलाओं का रुझान इस बार साफ़ तौर पर नीतीश कुमार की तरफ़ नज़र आ रहा है. उनका कहना है कि सिर्फ़ 10 हज़ारी योजना ही नहीं, बल्कि पिछले 20-25 साल में साइकिल योजना से लेकर जनरेशनल स्कीमों ने महिलाओं में एक स्थायी झुकाव बनाया है.

युवाओं पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि दो धाराएं साफ़ बन रही हैं. सरकारी नौकरी के वादों पर एक हिस्सा तेजस्वी यादव और महागठबंधन की ओर झुका हुआ है जबकि प्रवासी युवा बेहतर बिहार और पुरानी व्यवस्था से हटकर नई व्यवस्था की तलाश में प्रशांत किशोर की ओर जाता हुआ दिख रहा है.

देशमुख ने कहा, "अगर ये टर्नआउट गिर चुका होता तो वो ज़्यादा हैरान करने वाली बात होती."

इसी मुद्दे पर पत्रकार और लेखिका रूही तिवारी का भी साफ़ कहना है कि रिकॉर्ड टर्नआउट को सीधा सत्ता परिवर्तन या सत्ता बरक़रार रहने के संकेत के तौर पर नहीं देखा जा सकता.

रूही तिवारी कहती हैं, "रिकॉर्ड मतदान से हम यह नहीं सोच सकते कि सत्ता बदल जाएगी और ये भी नहीं सोच सकते की सत्ता नहीं बदलेगी. महिलाएं अगर ज़्यादा संख्या में वोट दे रही हैं तो उसका यह मतलब नहीं है कि वो इसलिए दे रही हैं कि कोई जीते या कोई हारे. वो इसलिए दे रही हैं क्योंकि अब महिलाएं अपनी बात आगे रख रही हैं."

  • बिहार चुनाव: लेफ्ट पार्टियों के लिए 2020 के प्रदर्शन को दोहरा पाना कितनी बड़ी चुनौती?
  • अनंत सिंह की गिरफ़्तारी और दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा में क्या बदलता दिख रहा है?- ग्राउंड रिपोर्ट
  • बिहार चुनाव: आरजेडी, जेडीयू या बीजेपी महिलाओं को टिकट देने के मामले में कौन आगे?
क्या महिलाएं तय करेंगी सरकार? image Getty Images जानकारों का कहना है कि महिला वोटर का बढ़ना सामान्य तौर पर बिहार में नीतीश के पक्ष में जोड़ा जाता रहा है.

बिहार में महिला वोटरों की भूमिका अहम मानी जाती है. यहां पुरुष वोटरों की अपेक्षा महिलाएं बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लेती रही हैं.

यही कारण है कि महिला वोटरों को साधने के लिए पार्टियों ने एक से बढ़कर एक वादे भी किए हैं.

पहले चरण की वोटिंग के बाद बिहार में अब यह बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या महिला वोट इस बार सरकार बनाने में निर्णायक फैक्टर साबित हो सकता है?

इस चर्चा पर पत्रकार और लेखिका रूही तिवारी कहती हैं कि बिहार का संदर्भ बाकी राज्यों से अलग है. उनके मुताबिक़ जब नीतीश कुमार 2005 में सत्ता में आए, तब से उन्होंने महिला मतदाताओं को एक अलग राजनीतिक इकाई की तरह देखना शुरू कर दिया था.

उन्होंने कहा, "बिहार की महिलाएं बाक़ी राज्यों से पहले ही पोलिटिकली जागरूक हो गईं थीं. उनके पास ऐसे नेता थे जिन्होंने उनको एक अलग वोट बैंक, एक अलग मतदाता समझा और उनके साथ उस तरह से व्यवहार किया."

रूही बताती हैं कि महिलाओं के लिए योजनाओं का मतलब केवल फ्रीबीज़ नहीं है, वहां आकांक्षा है.

उन्होंने कहा, "मुझे एक महिला ने बताया कि मैं दस हज़ार रुपये का इंतज़ार कर रही हूं और जैसे ही पैसे आएंगे मैं अपना ब्यूटी पार्लर खोलूंगी. इसलिए यह मान लेना कि महिलाएं निशुल्क लाभ लेकर घर बैठना चाहती हैं तो यह ग़लत है."

"बिहार का यह चुनाव आपको यही दिखाएगा कि महिला मतदाता अपने आप को किस तरह से जागरूक बना चुकी है."

इस पर यशवंत देशमुख कहते हैं कि नीतीश को लेकर लोगों में ऊब हो सकती है, नाराज़गी नहीं. और दोनों में बड़ा फ़र्क़ है.

उन्होंने कहा, "स्वतंत्र भारत के इतिहास में मुझे नहीं लगता किसी दूसरे नेता ने 20-25 साल पहले ऐसी एफडी (फिक्स्ड डिपॉजिट) बनाई हो, बिना तत्काल चुनावी लाभ सोचे. आज उसका रिटर्न उन्हें मिल रहा है."

image BBC

देशमुख के मुताबिक़ मीडिया विमर्श अभी भी पुरुष-प्रधान चश्मे से चुनाव को देख रहा है. वह कहते हैं, "पुरुष मतदाता के लिए जाति बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन महिला मतदाता के लिए वो उतनी महत्वपूर्ण नहीं है."

देशमुख मानते हैं कि अगर इस बार नीतीश कुमार महिलाओं की वजह से रिकॉर्ड नंबर लेकर फिर से सत्ता में आते हैं तो हिंदुस्तान में एक नए तरह का वोट बैंक निर्णायक रूप से स्थापित हो जाएगा.

उन्होंने कहा, "महिलाओं को दिए जाने वाले पैसे को मैं लाभार्थी योजना नहीं मानता. वो पैसा परिवार, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और उनके छोटे उद्यमों में जाता है. और बेहतर तरीके से समाज में वापस आता है."

यशवंत देशमुख के मुताबिक़ अगर नीतीश फिर मुख्यमंत्री बनते हैं तो इसका असर बिहार से बाहर जाकर राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करेगा.

  • प्रशांत किशोर के गाँव में उनके पिता की पहचान पड़ती है भारी- ग्राउंड रिपोर्ट
  • शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा चुनावी मैदान में, क्या थमेगा परिवार की हार का सिलसिला?
  • बिहार चुनाव: मुकेश सहनी को महागठबंधन ने इतनी तवज्जो क्यों दी
किन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं लोग? image Getty Images बिहार में एक रैली के दौरान भीड़

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कई मुद्दे चर्चा में हैं, लेकिन कुछ प्रमुख विषय मतदाताओं के लिए सबसे ज़्यादा मायने रख रहे हैं.

इस बार चुनाव में रोज़गार और पलायन सबसे बड़ा मुद्दा माना जा रहा है. युवा पीढ़ी रोज़गार की तलाश में है और कई लोग बाहर पलायन कर चुके हैं. यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा रही हैं.

लेकिन चुनाव के बीच ज़मीन पर असल में किस बात की चर्चा है इस सवाल पर बीबीसी की डिजिटल वीडियो एडिटर सर्वप्रिया सांगवान बताती हैं कि मैदान में नैरेटिव हमेशा वैसा नहीं होता, जैसा हम सोचते हैं.

उन्होंने कहा, "हमने आज तक जितने चुनाव कवर किए हैं, उनमें हमेशा एक बात नज़र आई है, आप जो सोचते हैं कि ये मुद्दे हैं, दरअसल उससे अलग ही कोई मुद्दा निकल आता है."

सर्वप्रिया कहती हैं कि बिहार में भले खुलकर कोई नहीं बोल रहा, लेकिन एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न) भी एक मुद्दा है.

उन्होंने कहा, "किसी ने मुझे चुनाव के दौरान कहा था कि इस देश में अंबानी के पास भी एक ही वोट है और एक ग़रीब आदमी के पास भी एक ही वोट. यही इस देश का लोकतंत्र है."

वो कहती हैं कि पहले चरण में दोपहर 1 बजे तक 42 फ़ीसदी मतदान होना यही संकेत है कि लोग जल्दी वोट डाल लेना चाहते थे कहीं ऐसा ना हो कि शाम को जाकर उन्हें बताया जाए कि 'आपके वोट तो डल चुके हैं'.

सर्वप्रिया का मानना है कि हरियाणा में 'वोट चोरी' वाले आरोपों ने विपक्ष को भी भरोसा दिया कि ये नैरेटिव ग्राउंड पर लोगों को समझ में आ रहे हैं.

इसी सवाल पर पत्रकार और लेखिका रूही तिवारी कहती हैं कि बिहार में मुद्दे पीढ़ियों के हिसाब से अलग-अलग रूप लेते हैं.

उन्होंने कहा, "जिस पीढ़ी ने आरजेडी का शासन देखा है, वो आज भी जंगलराज, क़ानून व्यवस्था की बात करती है. उन्होंने देखा था कि नीतीश को बिहार किस हालत में मिला और फिर उन्होंने उसे कहां तक पहुंचाया."

रूही के मुताबिक़ युवा पीढ़ी के लिए ये संदर्भ उतनी तीव्र याद में मौजूद नहीं. युवाओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा रोज़गार है. उन्होंने कहा, "युवा पीढ़ी के लिए क़ानून व्यवस्था से ज़्यादा रोज़गार बड़ा मुद्दा है. क्योंकि उन्होंने उस पल का ख़ुद अनुभव नहीं किया."

रूही कहती हैं इसी वजह से ये चुनाव थोड़ा जटिल है क्योंकि दोनों मुद्दे पीढ़ी के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं.

आरजेडी नेता तेजस्वी को लेकर उन्होंने कहा, "वो अपने पिता के शासन से खुद को पूरी तरह अलग नहीं कर सकते थे. इसलिए उन्होंने नौकरी को मुद्दा बना लिया क्योंकि वे जानते थे कि ये नीतीश कुमार की कमजोर कड़ी है. क़ानून व्यवस्था पर वो काउंटर नहीं कर सकते थे, लेकिन रोज़गार पर वो युवा पीढ़ी को संबोधित कर सकते थे."

जातिवाद कितना बड़ा मुद्दा है? image Getty Images बिहार में जातिवाद राजनीति का एक अहम पहलू माना जाता है

बिहार के चुनावी मैदान में जाति की राजनीति पिछले कई दशकों से केंद्रीय भूमिका में रही है. और इस बार भी ये चर्चा ख़त्म नहीं हुई है.

बीबीसी हिन्दी न्यूज़ के एडिटर नितिन श्रीवास्तव कहते हैं कि बिहार में जाति एक दोहराते रहने वाली चीज़ है.

उन्होंने कहा, "जब भी आप बिहार में जाते हैं तो यह बात आपको हर जगह दोहराते हुए मिलती है. गांव में, सड़कों पर, पटना में लोग अभी भी मानते हैं कि अगर किसी पार्टी ने जातीय समीकरण सही बैठा लिए तो चुनाव उसी का है."

नितिन बताते हैं कि बिहार में पिछले 35-40 सालों में जातिवाद की जड़ें ज़मीनी विवाद से निकलीं हैं. उनका कहना है, "चाहे नीतीश के 20 साल हों या उसके पहले लालू यादव के 20 साल, एक विशेष जाति का प्रभुत्व हमेशा रहा. इसलिए जाति का फैक्टर बना रहेगा, क्योंकि वो जीत का फार्मूला साबित हुआ है."

उन्होंने कहा, "अब उसके (जाति) आगे डेवलपमेंट है, उसके आगे माइग्रेशन है और उसके आगे जॉब्स हैं. यह समझ में आता है कि जब लोग अपनी जाति समीकरण वाली गणित सही बैठा लें तो उनको वो व्यावहारिकता का फैक्टर मानते हैं. और इस बार भी सभी लोग उसी पर ही बात कर रहे हैं."

नितिन कहते हैं कि चाहे महिलाओं के खाते में 10 हज़ार रुपये का मुद्दा हो या नौकरियों का वादा, आख़िर में बातचीत एक बिंदु पर जाकर फिर जाति की पहचान पर लौट आती है.

उन्होंने कहा, "सड़क, विकास, कल्याण सबकी बात हो रही है. लेकिन आख़िर में फिर यही आता है कि वो किस जाति के हैं तो हम वहीं वोट देंगे."

यशवंत देशमुख कहते हैं कि बिहार में जाति की बहस केवल यह नहीं है कि किस जाति की वोट कितनी आई, असली बात है कि गठबंधन धर्म किस तरह निभ रहा है.

बिहार में सरकारी नौकरी image Getty Images सांकेतिक तस्वीर

बिहार हो या कोई और राज्य, सरकारी नौकरी लोगों के लिए एक बड़ा आकर्षण बनी रहती है. युवाओं में रोज़गार की तलाश और बेहतर सामाजिक स्थिति पाने की चाह इस मुद्दे को चुनावी चर्चा का केंद्र बनाती है.

बिहार में सरकारी नौकरी इस बार सिर्फ़ रोज़गार का मुद्दा नहीं है, बल्कि युवा और महिलाओं की उम्मीदों का भी केंद्र बन गया है.

बीबीसी हिन्दी न्यूज़ के एडिटर नितिन श्रीवास्तव इस पर कहते हैं कि नौकरी का सवाल जगह तो बना रहा है, लेकिन गुस्से के साथ.

उन्होंने कहा, "बिहार में लगभग 57-58 फ़ीसदी आबादी 25 साल या उससे कम उम्र की है. इसमें से लगभग क्वार्टर जनरेशन ने जंगल राज केवल सुना है, देखा नहीं. ये जनरेशन एस्पिरेशनल है और इसलिए जॉब्स की बात करती है."

नितिन बताते हैं कि सरकारी नौकरी को पहले सिर्फ़ सामाजिक स्टेटस और कुछ विशेषाधिकार के लिए देखा जाता था, जैसे दहेज या ट्रैवल का लालच, लेकिन अब उदारीकरण और व्यावसायीकरण ने प्राइवेट नौकरियों को भी लोकप्रिय बना दिया है.

उन्होंने कहा है कि बिहार के छोटे शहरों में बैंक ब्रांच, एटीएम सब हैं. इसलिए लोगों में जॉब्स को लेकर आकांक्षा भी है, लेकिन गुस्सा है कि अभी तक पर्याप्त अवसर नहीं मिले. तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर दोनों ही इसी पहलू को फ्रंट पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.

नितिन कहते हैं कि इस चुनाव में युवा और महिला मतदाता के मुद्दों को सेंटर स्टेज पर रखकर संतुलन कार्य चल रहा है, जहां रोजगार, स्कीम्स और सामाजिक सशक्तिकरण एक साथ चुनावी नैरेटिव में हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

  • बिहार चुनाव: पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान की वजह कहीं एसआईआर तो नहीं?
  • बिहार चुनाव: पहले चरण के मतदान प्रतिशत पर कौन कर रहा है क्या दावे
  • बिहार चुनाव: घुसपैठ से लेकर जंगलराज तक, तेज़ हुई बयानबाज़ी, सभी दलों ने किए बड़े दावे
  • पश्चिम बंगाल में एसआईआर कराना क्यों मुश्किल हो सकता है? और बिहार चुनाव में यह कितना बड़ा मुद्दा है?
image
न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें