बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की ओर से 1,000 किलो आम के डिब्बे इसी हफ़्ते दिल्ली में 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर पहुंचे.
कम से कम भारतीय मीडिया को तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि आमों का यह तोहफ़ा बांग्लादेश और भारत के बीच 'कड़वे' द्विपक्षीय संबंधों में थोड़ी 'मिठास' घोलने की कोशिश है.
इससे पहले भी बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना हर साल गर्मी के मौसम में पीएम मोदी को आम भेजा करती थीं.
उस समय दिल्ली में बांग्लादेशी राजदूत ने इस संवाददाता से कहा था, "शाकाहारी नरेंद्र मोदी को पद्मा हिलसा भेजने का कोई मतलब नहीं है. लेकिन आम एक ऐसा उपहार है जिसे इस पूरे उपमहाद्वीप में हर कोई पसंद करता है."
तब से शेख़ हसीना द्वारा भेजी गई रंगपुर की हरिभंगा या राजशाही की आम्रपाली की टोकरी न केवल दिल्ली में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति तक पहुंचने लगी, बल्कि पश्चिम बंगाल या त्रिपुरा जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक भी पहुंचने लगी.
लेकिन आम कूटनीति या मैंगो डिप्लोमेसी का एक लंबा इतिहास रहा है.
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भू-राजनीतिक विश्लेषक प्रियजीत देबसरकार के शब्दों में, "मेरा मानना है कि डॉ. यूनुस को भारत के साथ आम कूटनीति का यह रास्ता इसलिए अपनाना पड़ा क्योंकि बांग्लादेश विभिन्न कारणों से भारी दबाव में है मसलन- अमेरिका से टैरिफ़ का दबाव, मध्य पूर्व में संकट, पड़ोसी म्यांमार के हालात."
उन्होंने कहा, "वे अब दिल्ली के साथ संबंध बहाल करने की बात खुलेआम कर रहे हैं. इसलिए यह देखना बाकी है कि इससे तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में क्या बदलाव आता है."
दुनिया में सबसे अधिक आम निर्यात करने वाले तीन देश क्रमशः भारत, मैक्सिको और पाकिस्तान हैं.
बांग्लादेश भी इस सूची में शीर्ष दस में शामिल है, और दुनिया में नए बाज़ार खोजने के प्रयासों में इन देशों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है.
37 साल पहले पाकिस्तान में हुए विमान हादसे में सैन्य शासक और राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक की रहस्यमय मौत की घटना भी आमों की पेटी से जुड़ी हुई है.
दुनिया के इस हिस्से में आम सिर्फ एक स्वादिष्ट फल नहीं है. आम की टोकरी रहस्य, राजनीति, प्रतिद्वंद्विता और कूटनीति से घिरी हुई है.
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1947 में भारत के विभाजन के बाद उभरे दो स्वतंत्र देश भारत और पाकिस्तान दोनों का 'राष्ट्रीय फल' आम है. दोनों देशों ने अपनी वैश्विक पहुंच या कूटनीति में आम को एक प्रमुख साधन के रूप में इस्तेमाल किया है.
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 1950 के दशक में जब भी विदेश यात्रा पर जाते थे तो अपने साथ उपहार के तौर पर आमों का एक डिब्बा ले जाते थे.
जब भी कोई विदेशी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भारत आते थे तो नेहरू की ओर से उन्हें आम ज़रूर पेश किया जाता था.
1955 में अपनी चीन यात्रा के दौरान पंडित नेहरू ने चीनी प्रधानमंत्री चऊ एनलाई को दशहरी और लंगड़ा आम के आठ पौधे उपहार में दिए थे, जिन्हें गुआंगझोउ पीपुल्स पार्क में लगाया गया.
उसी साल जब सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव भारत आए तो मॉस्को लौटते समय उनकी उड़ान के साथ उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध मलीहाबादी दशहरी आमों की कई टोकरियाँ भी थीं जो जवाहरलाल नेहरू की ओर से उपहार में दी गई थीं.
बाद में जब राजीव गांधी ने 1986 में फिलीपींस का दौरा किया तो उन्होंने उस देश के राष्ट्रपति को भी आमों का एक डिब्बा भेंट किया.
दिलचस्प बात यह है कि फिलीपींस का राष्ट्रीय फल भी आम है, लेकिन वहां के आमों का स्वाद, सुगंध और गुण निश्चित रूप से भारतीय आमों से बहुत अलग हैं.
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उपहार के रूप में आम देने में पाकिस्तान भी पीछे नहीं था और चीन को दिए गए पाकिस्तानी आम उस देश में सांस्कृतिक क्रांति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गए.
अगस्त 1968 में पाकिस्तानी विदेश मंत्री मियां अरशद हुसैन ने बीजिंग का दौरा किया और चीनी चेयरमैन माओत्से तुंग को आमों का एक डिब्बा भेंट किया.
चीन में आम अभी भी एक अज्ञात फल था और माओत्से तुंग खुद इस नए फल को आजमाने के लिए विशेष रूप से उत्साहित नहीं थे... इसलिए उन्होंने उन आमों को देश भर के विभिन्न कारखानों और विश्वविद्यालयों में वितरित किया.
चीन के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और कारखानों में चेयरमैन के उपहार को लेकर जो उत्साह दिखा वह आज भी इतिहास का हिस्सा है. श्रमिकों और छात्रों ने फॉर्मेल्डिहाइड में आमों को संरक्षित करके उन्हें कांच के कंटेनरों में रखकर अपना सम्मान प्रकट किया.
भारत -पाकिस्तान में आम कूटनीति और प्रतिद्वंद्विताचिर प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान ने भी तनाव कम करने के लिए आम कूटनीति का सहारा लिया है.
1981 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक़ ने भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आमों का एक डिब्बा भेजा जिसे पाकिस्तान में 'अनवर रटौल' के नाम से जाना जाता है.
भारत के उत्तर प्रदेश में एक गांव है जिसका नाम 'रटौल' है और इस शिष्टाचार वाले उपहार पर यह बहस हावी हो गई कि इस आम का मूल स्थान भारत में है या पाकिस्तान में.
साल 2008 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने भी भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आमों का एक डिब्बा तोहफ़े में दिया था. हालाँकि उसके तुरंत बाद मुंबई में हुए 26/11 के हमलों ने उस गर्मजोशी को ठंडा कर दिया.
सात साल बाद 2015 में पाकिस्तान के तत्कालीन नेता नवाज़ शरीफ़ ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी को आमों की टोकरी भेजी, लेकिन दोनों देशों के बीच संघर्ष को हल करने में इससे कोई ख़ास मदद नहीं मिली.
भारत में आम की लगभग 1,200 किस्में पैदा होती हैं जबकि पाकिस्तान में लगभग 400 किस्में पैदा होती हैं. हमेशा की तरह भारत में आम की पैदावार भी काफ़ी होती है.
हालाँकि पाकिस्तान के लिए आम उतनी महत्वपूर्ण निर्यात फसल नहीं है जितनी भारत के लिए.
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दुनिया में आमों के पारंपरिक बाज़ार अमेरिका और चीन हैं. इसके अलावा, यूरोप में दक्षिण एशियाई आमों का एक बड़ा बाज़ार है.
चीन को आम निर्यात करने के भारत के प्रयास कभी भी सफल नहीं रहे.
चीन ने 2004 में भारतीय आमों के लिए अपने बाज़ार तक पहुंच खोली लेकिन तब भी भारतीय निर्यातक वहां ज़्यादा प्रभाव नहीं डाल पाए.
अमेरिका ने भी लगभग दो दशकों तक भारतीय आम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा था.
2006 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भारत दौरे के समय प्रतिबंध हटा और 'मैंगो इनिशिएटिव' शुरू किया गया.
ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्रपति बुश भारतीय आम खाने के लिए बहुत उत्सुक थे और यह उनकी व्यक्तिगत रुचि के कारण प्रतिबंध हटा लिया गया.
फिर जब 17 अप्रैल, 2007 को भारतीय आमों के 150 डिब्बे न्यूयॉर्क के जेएफ़के हवाई अड्डे पर उतरे तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, "यह इतिहास का बहुप्रतीक्षित फल डिलीवरी हो सकती है."
वॉशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास भी नियमित रूप से अमेरिकी सीनेटरों, नेताओं और मंत्रियों को आम के उपहार भेजता है और अक्सर अपने दूतावास में 'आम पार्टियों' का आयोजन करता है.
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दिल्ली के आम विशेषज्ञ प्रदीप कुमार दासगुप्ता ने बीबीसी को बताया, "वास्तव में आम की 'शेल्फ़ लाइफ़' जितनी लंबी होगी वह निर्यात के लिए उतना ही अधिक उपयुक्त होगा. क्योंकि एक आम को बाग से लंदन या न्यूयॉर्क की दुकान तक पहुंचने में पांच से सात दिन लगते हैं और उस समय तक वह ज़रा भी ख़राब नहीं होता."
भारत के कोंकण इलाक़े और महाराष्ट्र से आने वाले अल्फांसो आमों को छोड़कर अधिकांश आम की किस्मों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है और वे जल्दी ख़राब भी हो जाते हैं, हालांकि वे स्वाद और सुगंध में कमतर नहीं होते.
लेकिन पाकिस्तान की शुष्क जलवायु के कारण वहां आमों में फाइबर बहुत कम होता है और उनकी शेल्फ़ लाइफ़ भी लंबी होती है.
प्रदीप कुमार दासगुप्ता ने कहा, "यही कारण है कि भारत से अल्फांसो के अलावा अन्य आमों का निर्यात बहुत कम होता है, जबकि पश्चिमी बाज़ार में पाकिस्तानी सिंदूरी, चौसा या अनवर रटौल को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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