"हम बीते एक साल से आशा और निराशा के बीच दिन काट रहे थे. हमारे भविष्य की तमाम उम्मीदें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं. लेकिन अब हमारे सामने अंधेरा नज़र आ रहा है. समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा? दोबारा नौकरी मिलेगी या नहीं?"
यह कहना है दीपक मंडल का, जो कोलकाता से सटे दक्षिण 24-परगना ज़िले के एक स्कूल में पढ़ाते थे.
उन्होंने उसी साल यानी 2016 में स्कूल सेवा आयोग की ओर से आयोजित भर्ती परीक्षा में पास होकर नौकरी हासिल की थी, जिस पर कुछ दिनों बाद ही बड़े पैमाने पर धांधली और घोटाले के आरोप लगे थे.
उत्तर 24-परगना ज़िले के एक स्कूल में विज्ञान पढ़ाने वाले प्रणब कुमार बर्मन कहते हैं, "परीक्षा में पास होने वाले योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की सूची तो सीबीआई और स्कूल सेवा आयोग के पास पहले से ही थी. इसके बावजूद अदालत को तय समय के भीतर इसे मुहैया क्यों नहीं कराया जा सका? मैंने तो अपनी प्रतिभा के बल पर नौकरी हासिल की थी. अब समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या करूं?"
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने तो बीते साल अप्रैल में ही घोटाले के आरोप की वजह से 25 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियां रद्द कर दी थीं. लेकिन राज्य सरकार और स्कूल सेवा आयोग ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट में फ़ैसला नहीं होने तक इन तमाम लोगों को नियमित रूप से वेतन का भुगतान जारी रखने का भरोसा दिया था और वैसा ही हुआ भी. उसके बाद सुनवाइयों का दौर जारी रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने बीती फ़रवरी में सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. अब गुरुवार को उसने अपने फ़ैसले में मामूली बदलाव करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को ही बहाल रखा है.
यानी साल 2016 की भर्ती परीक्षा के पूरे पैनल को रद्द कर दिया है. अदालत ने तीन महीने के भीतर नए सिरे से भर्ती की प्रक्रिया शुरू करने को कहा है. इसमें वो लोग भी योग्यता के आधार पर शामिल हो सकते हैं जिनकी नौकरी गई है.
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही इन शिक्षकों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है.
उनमें से कुछ के लिए राहत की एकमात्र बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक़ उन सात हजार लोगों को ही वेतन की रकम लौटानी होगी जिन्होंने अपनी उत्तर पुस्किताएं काली छोड़ी थीं. इससे पहले हाईकोर्ट ने सबको यह रकम लौटाने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय में शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु के साथ बैठक में आगे की रणनीति पर विचार किया. उस बैठक में मुख्य सचिव मनोज पंत भी मौजूद थे.
अदालत के फ़ैसले पर टिप्पणी करते हुए ममता बनर्जी ने कहा है कि सरकार तय समयसीमा यानी तीन महीने के भीतर ही नई भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर देगी.
कोलकाता में पत्रकारों से बातचीत में उनका कहना था, "कुछ लोगों की ग़लती की सजा हज़ारों लोगों को भुगतनी पड़ी है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट के फ़ैसले पर स्थगन आदेश दिया था. क्या इन लोगों को अपने बचाव का एक मौका नहीं दिया जा सकता था?"
ममता का कहना था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पढ़ा है, "न्याय प्रणाली के प्रति सरकार की गहरी आस्था है. किसी भी जज से कोई शिकायत नहीं है."
मुख्यमंत्री ने नौकरी गंवाने वाले लोगों से धैर्य बनाए रखने की अपील की है. अदालती फ़ैसले से नौकरी गंवाने वालों ने डिप्राइव्ड टीचर्स एसोसिएशन नामक एक संगठन बनाया है. एसोसिएशन ने सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों से मिलने की इच्छा जताई है.
ममता बनर्जी, शिक्षा मंत्री और विभाग के दूसरे अधिकारियों के साथ सात अप्रैल यानी सोमवार को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में उन लोगों से मुलाकात करेंगी.
मुख्यमंत्री का सवाल था कि एक झटके में करीब 25 हजार शिक्षकों के नहीं रहने की स्थिति में स्कूलों में कौन पढ़ाएगा? इनमें से करीब साढ़े ग्यारह हजार शिक्षक नौवीं-दसवीं के छात्रों को पढ़ाते थे.
कई शिक्षक फिलहाल 10वीं और 12वीं की परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं की जांच कर रहे हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि 'भाजपा राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करना चाहती है. क़ानूनी तरीके से इसका मुकाबला किया जाएगा.'
ममता बनर्जी का कहना था कि अगर उन परिवारों में (जिनकी नौकरियां गई हैं) कोई घटना होती है तो उसकी ज़िम्मेदारी बीजेपी और वाम दलों की ही होगी.
एक स्कूल में 36 शिक्षकों की नौकरी गई
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची बनाने के सवाल पर पेंच फंसा.
आख़िर तक राज्य सरकार इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दे सकी कि वो किस तरीके से यह सूची बनाएगी. इसकी वजह यह थी कि ज़्यादातर उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट या ग़ायब हो गई थीं.
जिस समय सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया उस समय गणित के शिक्षक मनोज तांती स्कूल में होने वाली परीक्षा में निरीक्षक की भूमिका निभा रहे थे.
यह ख़बर मिलते ही कक्ष से निकल कर वो हेडमास्टर के कक्ष में गए और कुछ देर बाद वहां से निकल कर रोते हुए घर की ओर रवाना हो गए.
दक्षिण-24 परगना ज़िले के जामतला भगवाचंद्र हाईस्कूल में मनोज के अलावा दस अन्य शिक्षकों की भी नौकरियां गई हैं. इससे हेडमास्टर शांतनु घोषाल परेशान हैं.
शांतनु कहते हैं, "अधिकांश शिक्षक गणित या विज्ञान पढ़ाते थे. अब उनके नहीं रहने पर इन दोनों अहम विषयों की पढ़ाई कैसे होगी, यह समझ में नहीं आ रहा है. अब स्कूल कैसे चलेगा?"
इसी तरह मुर्शिदाबाद ज़िले के फरक्का स्थित अर्जुनपुर हाई स्कूल के 60 में से 36 शिक्षकों की नौकरी चली गई है.
कैसे पता चली धांधलीसाल 2016 में पश्चिम बंगाल के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती के लिए स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की ओर से परीक्षा आयोजित हुई थी.
लेकिन गड़बड़ी की परतें उधड़ने का सिलसिला शुरू हुआ वर्ष 2018 से.
एसएससी की आयोजित उस परीक्षा का नतीजा 27 नवंबर 2017 को आया. नतीजों के आधार पर जो मेरिट लिस्ट तैयार की गई थी उसमें सिलीगुड़ी की रहने वाली बबीता सरकार 77 नंबर पाकर टॉप 20 में जगह बनाने में कामयाब रही थीं. लेकिन आयोग ने कुछ दिनों बाद किसी नामालूम वजह से इस मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया और दूसरी मेरिट लिस्ट तैयार की.
दिलचस्प बात यह है कि इस नई मेरिट लिस्ट में बबीता सरकार का नाम तो वेटिंग लिस्ट में चला गया. लेकिन तृणमूल कांग्रेस सरकार में मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता अधिकारी का नाम सूची में पहले नंबर पर आ गया.
उससे भी दिलचस्प बात यह है कि अंकिता को बबीता के मुकाबले 16 नंबर कम मिले थे. उसके बाद ही धीरे-धीरे इस धांधली से परदा उठने लगा.
बबीता सरकार के पिता ने कलकत्ता हाईकोर्ट में दूसरी मेरिट लिस्ट को चुनौती दी. अदालत ने इस मामले की जांच के लिए न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) रंजीत कुमार बाग की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया.
समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में पांच तत्कालीन अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने की सिफ़ारिश की. इस रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने साल 2021 में इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया और उसने एफ़आईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी.
सीबीआई ने इस मामले में राज्य के शिक्षा मंत्री परेश अधिकारी से भी लंबी पूछताछ की. कलकत्ता हाईकोर्ट ने शिक्षा मंत्री परेश अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए उनसे 41 महीने का वेतन दो किस्तों में वसूलने का आदेश दे दिया.
अदालत ने उनकी जगह बबीता सरकार को नौकरी देने का भी आदेश दिया.
रंजीत बाग समिति की रिपोर्ट और सीबीआई और ईडी की जांच से मिली जानकारी के मुताबिक़, अधिकारियों ने चुनिंदा उम्मीदवारों को सलाह दी कि वो अपनी ओएमआर उत्तर पुस्तिकाओं के बारे में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगे और पुनर्मूल्यांकन की अपील करें.
उसके बाद अधिकारियों ने ओएमआर शीट में ऐसे उम्मीदवारों के नंबर बढ़ा दिए जिससे उनके नाम मेरिट लिस्ट में काफ़ी ऊपर आ गए. जबकि पहले बनी मेरिट लिस्ट में उनके नाम या तो नहीं थे या फिर वेटिंग लिस्ट में थे.
जांचकर्ताओं के मुताबिक कुछ उम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं में अवैध तरीके से नंबर बढ़ाए गए. नंबर बढ़ा कर नई मेरिट लिस्ट जारी करने के बाद उन गड़बड़ी वाली उत्तर पुस्तिकाओं को नष्ट कर दिया गया ताकि धांधली का कोई सबूत नहीं रहे.
अदालत के फैसले के बाद विपक्षी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. भाजपा सांसद शमीक भट्टाचार्य ने पत्रकारों से कहा, "तृणमूल कांग्रेस के संगठित भ्रष्टाचार की वजह से बंगाल में स्कूली शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है. राज्य सरकार की वजह से हज़ारों युवक-युवतियों को ऐसी मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ रहा है."
सीपीएम के प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम कहते हैं, "इस घटना के लिए राज्य सरकार ही ज़िम्मेदार है. अयोग्य और योग्य उम्मीदवारों-दोनों से एक जैसा बर्ताव किया जा रहा है. इसके लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ज़िम्मेदार हैं."
दूसरी ओर, कांग्रेस नेता अधीर चौधरी ने इसके लिए सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही ज़िम्मेदार ठहराया है.
उनकी दलील थी कि उनकी पार्टी के लोगों ने ही इस घोटाले को अंजाम दिया है, ऐसे में मुख्यमंत्री अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकतीं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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