पूरे देश में एक बार फिर कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले सामने आने लगे हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के जारी आंकड़ों के अनुसार सोमवार तक कोरोना संक्रमण के 3,961 सक्रिय मामले हैं.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के निदेशक ने इसी सप्ताह कहा था कि भारत में कोरोना वायरस के चार वैरिएंट पाए गए हैं.
देश में कोरोना की तीन लहरें पहले भी आ चुकी हैं. इस दौरान बीमारी की गंभीरता इतनी अधिक रही कि बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद सरकार ने व्यापक पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया और बड़ी आबादी को टीका लगाया गया.
सवाल उठ रहा है कि क्या 2022 तक लगाए गए कोविड के टीके कोरोना के नए वैरिएंट के ख़िलाफ़ भी कारगर होंगे. क्या नए वैरिएंट के कारण कोरोना की नई लहर आने की आशंका है?
आइए इसके बारे में जानते हैं. लेकिन इसके पहले ये जानना ठीक रहेगा कि आख़िरकार कोरोना का नया वैरिएंट क्या है. इसके लक्षण क्या हैं, ये समझना भी ज़रूरी है.
कोरोना का नया जेएन.1 वैरिएंट क्या है?
फ़िलहाल सिंगापुर और हांगकांग में भी कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं.
ने बताया कि सिंगापुर में अब तक जिन नमूनों के जीनोम की इंडेक्सिंग की गई है, उनमें से ज़्यादातर मामले जेएन.1 वैरिएंट के पाए गए हैं.
लेकिन ये जेएन.1 वैरिएंट नया नहीं है. यह ओमिक्रॉन का एक सब-वैरिएंट है जिसे पिछले कुछ वर्षों में खोजा गया है.
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. संजय राय कोवैक्सीन (कोविड वैक्सीन) के सभी तीन चरणों में प्रमुख शोधकर्ता थे.
बीबीसी संवाददाता चंदन जजवाड़े ने उनसे कोविड-19 के जेएन.1 वैरिएंट के बारे में पूछा.
जवाब में डॉ. संजय राय ने कहा, "जेएन.1 कोरोना के ओमिक्रॉन वायरस का एक सब-वैरिएंट है. इसकी खोज हुए एक साल से ज़्यादा हो गया है. यह कोई नया वायरस नहीं है. यह गंभीर हो सकता है या नहीं, इसके बारे में हमारे पास पूरी जानकारी है.''
डॉ. संजय राय ने कहा, ''जेएन.1 वैरिएंट से डरने की ज़रूरत नहीं है. अभी जो पता चला है, उसके मुताबिक़ यह सामान्य सर्दी-जु़काम जितना हल्का या उससे भी हल्का हो सकता है.''
लेकिन क्या यह नया वैरिएंट ख़तरनाक हो सकता है? इसके लिए क्या ध्यान रखना चाहिए? हमने इस मामले पर विशेषज्ञों की राय जाननी चाही.
नागपुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अविनाश गावंडे कोरोना महामारी के दौर में महाराष्ट्र सरकार की ओर से गठित टास्क फोर्स का हिस्सा थे.
डॉ. गावंडे कहते हैं, "यह वैरिएंट ओमिक्रॉन से हल्का है. हालांकि यह तेज़ी से फैलता है. अगर एक व्यक्ति संक्रमित होता है, तो वह इस वैरिएंट से तेज़ी से कई लोगों को संक्रमित कर सकता है. वैसे स्थिति इतनी गंभीर नहीं है. इसलिए लोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है.''
उन्होंने यह भी कहा कि छोटे बच्चों, बुजु़र्गों और पहले से ही कई स्वास्थ्य परेशानियों से जूझ रहे लोगों को निश्चित रूप से अपना ध्यान रखना चाहिए.
वो कहते हैं कि जो लोग कोरोना के इस वैरिएंट से संक्रमित हैं उन्हें दूसरे लोगों से दूरी बनाए रखनी चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपसे किसी और को संक्रमण न फैले.
कुछ साल पहले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को भारी मुश्किल में डाल दिया था. इससे लाखों लोग मारे गए थे. उस समय भारत में व्यापक पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया गया था.
लोगों को सबसे ज़्यादा कोवैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई थीं. कुछ लोगों ने रूसी स्पुतनिक वैक्सीन भी ली थी.
लेकिन क्या दो-तीन साल पहले ली गई वैक्सीन मौजूदा वैरिएंट के ख़िलाफ़ कारगर होगी.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन महाराष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे ने कहा कि जिन लोगों ने वैक्सीन की दो डोज़ के साथ बूस्टर डोज़ ली है, उन्हें थोड़ा फ़ायदा ज़रूर होगा.
उन्होंने कहा, "ये टीके पहले कोविड वायरस के ख़िलाफ़ बनाए गए थे. वे टीके मूल वायरस के ख़िलाफ़ पूरी तरह से असरदार नहीं थे.''
डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि वैक्सीन लगने के बाद आपको कोरोना का संक्रमण नहीं होगा. लेकिन संक्रमित होने पर लक्षण मामूली हो सकते हैं.
हालांकि जिन लोगों ने टीके की दोनों डोज़ और बूस्टर डोज़ ले ली है, उनमें लंबे समय तक इम्यूनिटी बनी रह सकती है. लेकिन जिन्होंने केवल सिर्फ़ एक या दो डोज़ ली है उनकी इम्यूनिटी कम हो सकती है.
डॉ. अविनाश भोंडवे ने कहा, "कोरोना वैक्सीन से निश्चित तौर पर फ़ायदा होगा लेकिन केवल उन लोगों को लाभ होगा जिन्हें दो डोज़ और एक बूस्टर डोज़ मिली है.''
वहीं डॉ. अविनाश गावंडे का कहना है कि पहले की वैक्सीन मौजूदा वैरिएंट पर काम नहीं करेगी.
उनके मुताबिक़, "कोरोना के ख़िलाफ़ हर साल टीका लगवाना फ़ायदेमंद होगा. इसके लिए हर साल नए टीके विकसित करने होंगे, क्योंकि नए वैरिएंट पर पुराने टीके काम नहीं करेंगे."
उन्होंने कहा, ''जिस तरह एक साल पहले दिया गया इन्फ्लुएंज़ा का टीका अगले साल किसी काम का नहीं रहता और नया टीका विकसित करना पड़ता है, उसी तरह अगर कोरोना पर पूरी तरह से काबू पाना है तो नए टीके विकसित करने होंगे.''
हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि "अगर कुछ लोगों में पुराने टीकों से इम्यूनिटी बनी हुई है तो इससे मौजूदा वैरिएंट से लड़ने में मदद मिलेगी."
अविनाश भोंडवे का कहना है कि रिसर्च महंगी होने की वजह से नया टीका बनाना संभव नहीं लगता.
डॉक्टरों के अनुसार इन्फ्लुएंज़ा वायरस लगातार म्यूटेट करता रहता है, इसलिए हर साल इसका नया टीका जारी किया जाता है.
अविनाश भोंडवे ने कहा, ''कोरोना के नए वैरिएंट आते रहेंगे. इसलिए हर बार नया टीका बनाना संभव नहीं है क्योंकि रिसर्च में बहुत ख़र्च होता है.''
डॉक्टर कहते हैं कि यह सही है कि हर साल जब वायरस का कोई वैरिएंट सामने आता है तो उसके लिए वैक्सीन बनाई जानी चाहिए.
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना का नया वैरिएंट तेज़ी से फैल रहा है. कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि क्या कोरोना की नई लहर आ सकती है?
डॉ. अविनाश गावंडे ने कहा कि इस बार नई लहर की आशंका कम है. इसके पीछे वो तीन कारण बताते हैं.
पहला, हमारे देश में बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाया जा चुका है. इसलिए, कुछ लोगों में इस वैरिएंट से लड़ने के लिए कम से कम कुछ इम्यूनिटी तो है.
दूसरा, हालांकि यह वैरिएंट तेज़ी से फैल रहा है लेकिन इसकी गंभीरता कम है. भले ही यह कई लोगों के साथ हो लेकिन यह जल्द ही ठीक हो जाएगा इसलिए उन्होंने कहा कि पहले जैसे हालात नहीं होंगे.
तीसरा, अगर कोई व्यक्ति इस वैरिएंट से संक्रमित भी हो तो भी उसे पता नहीं चलता क्योंकि रोग की गंभीरता कम होती है.
हालांकि इस वैरिएंट से संक्रमित होने के बाद व्यक्ति के शरीर में इस वैरिएंट से लड़ने के लिए इम्यूनिटी विकसित हो सकती है.
डॉ. अविनाश गावंडे का कहना है कि 'नया वैरिएंट जेएन.1 ओमिक्रॉन का एक सब- वैरिएंट है. हालांकि इसके लक्षण हल्के हैं, यह गंभीर नहीं है, इसलिए अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की संख्या भी कम नज़र आ रही है.'
वो कहते हैं, ''लेकिन इस वैरिएंट में मरीज़ों की संख्या बढ़ती भी है तो ऐसी स्थिति नहीं आएगी कि ज़्यादा लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़े. क्योंकि इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं. मृत्यु दर भी कम है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना की नई लहर आएगी. लेकिन जिन लोगों को पहले से ही दूसरी बीमारियां हैं उन्हें चिंता करने की ज़रूरत है.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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