भारत और पाकिस्तान के बीच जारी मौजूदा तनाव के दौरान भारत की पारंपरिक विदेश नीति और रणनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है.
22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बना हुआ है. इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें 25 पर्यटक थे.
भारत ने इस हमले के जवाब में 6 और 7 मई की दरमियानी रात को पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में हवाई हमले किए. भारत ने यह दावा किया कि यह हमला पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में मौजूद आतंकवादी ठिकानों पर किया गया. भारत के हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा और सीमा पर गोलीबारी भी हुई. यह तनाव लगातार बढ़ता दिख रहा है.
भारत ने जिस तरीके से इस बार हमला किया, उससे भारत की पारंपरिक रणनीति में बदलाव देखने को मिला है. और इसकी काफ़ी चर्चा है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस बार 'भारत ने अमेरिका और इसराइल वाली रणनीति अपनाई' है.
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भारत ने आमतौर पर पुराने दौर में चरमपंथी हमलों के बाद कूटनीतिक स्तर पर कार्रवाई करने की कोशिश की है. 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमलों का आरोप भी भारत ने लश्कर-ए-तैयबा पर लगाया था. इस मामले में भारत ने कई सबूत भी पेश किए थे.
भारी हथियारों से लैस दस चरमपंथियों ने मुंबई की कई जगहों और प्रतिष्ठित इमारतों पर हमला कर दिया था, जो चार दिन तक चला. मुंबई हमलों में 160 से अधिक लोग मारे गए थे.
हाल ही में मुंबई पर हुए 26/11 हमलों के अभियुक्त तहव्वुर राना का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण किया गया है.
लेकिन, अब ऐसे हमलों के बाद क्या भारत की रणनीति बदल गई है?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब कहते हैं, "मुझे लगता है कि ये जो 'ऑपरेशन सिंदूर' है, जिसके ज़रिए भारत ने पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई की है, वो एक नई नीति अपनाने को दिखाता है.
"साल 2001 में जब संसद भवन पर हमला हुआ था, उसके बाद 26 नवंबर 2008 में मुंबई में हमला किया गया था तो भारत सरकार ने इसके बदले कुछ ख़ास कदम नहीं उठाए थे."
उनका कहना है, "ये डर हमेशा था कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. अगर हम उन पर पारंपरिक तरीके से सेना के ज़रिए हमला करेंगे, तो वो परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये डर भारत सरकार के मन में था, और भारतीय रणनीतिक विचारकों की भी यही सोच थी."
लेकिन साल 2016 में उरी में अपने 19 सैनिकों के मारे जाने के बाद भारत ने नियंत्रण रेखा के पार चरमपंथियों के शिविरों पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' की थी.
साल 2019 में पुलवामा में विस्फोट हुआ जिसमें भारतीय अर्द्धसैनिक बलों के 40 जवान मारे गए थे. इसके बाद भारत ने बालाकोट में अंदर तक एयर स्ट्राइक की थी.
हैपीमोन जैकब कहते हैं, "अभी कुछ दिन पहले जो हमला किया गया है, मेरा मानना है कि इन तीनों हमले में एक नई नीति अपनाई जा रही है, जिसके तहत जब भी पाकिस्तान भारत के ऊपर सब-कंवेशनल तरीके से यानी आतंकी हमला करेगा, तब भारत इसके जवाब में पारंपरिक तरीके से यानी सेना का इस्तेमाल करके स्ट्राइक करेगा."
उनका मानना है, "इसका महत्वपूर्ण निष्कर्ष ये है कि पाकिस्तान को ये पता चलेगा कि जब भी उनकी तरफ़ से कोई टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन भारत पर हमला करेगा तो भारत उसका जवाब ज़रूर देगा."
हाल के समय में भारत ने जो हमले किए हैं उसके बाद सबूत पेश कर बताया कि भारत में क्या हुआ, जिसके बदले में भारत ने हमला किया है.
भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी चरमपंथी हमले के ख़िलाफ़ गुहार नहीं लगाई, जो पहले सामान्य तौर पर हुआ करता था.
ये भारत की विदेश नीति में कितना बड़ा मूलभूत बदलाव है, जो कह रही है कि, ''वी विल स्ट्राइक एट विल''. क्या यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने से कहीं आगे की रणनीति है?
प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब कहते हैं, "अमेरिका में जब कोई हमला होता है तो अमेरिका किसी वैश्विक मंच में नहीं जाता है, इसराइल की भी यही नीति है, वो भी किसी मंच में नहीं जाकर बताता है कि हमारे यहां हमला हुआ है, क्या करें."
"भारत ने भी यही रणनीति अपनाई है और यह संदेश दिया है कि हमारे लोग मारे गए हैं, तो हम कार्रवाई करेंगे. ये बात ज़रूर है कि ये बात अंतरराष्ट्रीय मंच में जाएगी तो वहां भी भारत के पक्ष में समर्थन दिख रहा है."
हैपीमोन जैकब कहते हैं, "मेरा ये मानना है कि अभी हम सबूत के तौर पर ये कहने वाले हैं कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन 'टीआरएफ़ द रेज़िस्टेंस फ्रंट' ने इसकी ज़िम्मेदारी ले ली है. जिसका संबंध लश्कर-ए-तैयबा के साथ है, और लश्कर-ए-तैयबा का हेडक्वॉर्टर है मुरीदके में, तो ये सबूत काफ़ी है."
हैपीमोन जैकब कहते हैं, "पाकिस्तान ने इस पर काफ़ी साल से कोई कार्रवाई नहीं की है और पाकिस्तान ने इस आतंकी संगठन को कई साल से ज़िंदा रखा है. यही सबूत है दुनिया के सामने, और भारत कहेगा कि इसी आधार पर इस आतंकी संगठन को डैमेज़ करने की योजना बनाई है, यही है 'ऑपरेशन सिंदूर'."
"जहां तक साइकोलॉजिकल इंप्लिकेशन का सवाल है तो उसको मैं एक अलग तरीके से देखना चाहूंगा. जब साल 2001 या 2008 में हमला हुआ था, तब अमेरिका एक ताक़तवर देश था. वो आज भी ताक़तवर है, पर उस समय अमेरिका वर्ल्ड पॉलिसमैन की तरह बर्ताव करता था. लेकिन आज अमेरिका की वैश्विक मुद्दों में इतनी दिलचस्पी नहीं है और भारत पहले की तुलना में बहुत ताक़तवर हो चुका है."
प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब कहते हैं, "पड़ोसी देश या अंतरराष्ट्रीय संगठन क्या कहेंगे, भारत समझता है कि उस पर इतना ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है. अगर हमें पता है कि हमारे ख़िलाफ़ टेरर अटैक हुआ है और ये पता है कि यह किसने किया है तो हम कार्रवाई करेंगे."
भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर दुनिया के कई देशों ने चिंता जताई है, लेकिन ज़्यादातर देशों ने खुलकर इसका विरोध भी नहीं किया है.

स्वीडन के थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की के अनुसार, भारत के पास 172 जबकि पाकिस्तान के पास 170 परमाणु वॉरहेड हैं.
हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि दोनों देशों के पास कितने परमाणु वॉरहेड तैनात हैं.
ऐसा माना जाता रहा है कि परमाणु शक्ति होने की वजह से इनमें से एक देश दूसरे देश पर कभी हमला नहीं करेगा, लेकिन हालिया संघर्ष के बाद क्या ऐसा कहा जा सकता है कि यह मान्यता बदल गई है?
प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब कहते हैं, "सैद्धांतिक तौर पर कहें तो परमाणु हथियार आपको हमले से बचाते हैं, लेकिन ये न तो आतंकवादी हमलों को रोकते हैं और न ही पारंपरिक हमलों को. इसलिए ये कहना उचित होगा कि परमाणु शक्ति संपन्न होना सिर्फ़ एक सीमित स्तर तक सुरक्षा देता है."
उनका कहना है, "अब पाकिस्तान की एयरफ़ोर्स को लेकर भी चिंता है कि वो काफ़ी सक्षम है. लेकिन मेरा मानना है कि अगर पाकिस्तान की पारंपरिक ताक़त अच्छी है, तो वो परमाणु हथियार की तरफ नहीं जाएगा. और अगर कन्वेंशनल वॉर हुआ, तो सेना और अर्थव्यवस्था दोनों के मामले में भारत कहीं ज़्यादा ताक़तवर है."
प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब मानते हैं कि वैश्विक स्तर पर भारत के पास अच्छे दोस्त हैं, जो पाकिस्तान के पास नहीं हैं. ऐसे में पारंपरिक युद्ध में भारत जीत सकता है और भारत का ये आकलन है कि परमाणु हथियार को इस समीकरण से बाहर रखें.
भारत और पाकिस्तान दो ऐसे पड़ोसी देश हैं जिनके बीच तल्ख़ी हमेशा बनी रहती है. दोनों देशों के बीच कई बार युद्ध भी हो चुके हैं.
आमतौर पर दोनों देशों के बीच ऐसे तनाव की स्थिति में हालात को शांत करने के लिए तीसरे देश की सक्रियता देखी गई है. लेकिन इस बार भारत ने तीसरे देश की मध्यस्थता को महत्व नहीं दिया है.
प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब कहते हैं, "पाकिस्तान साल 1947 से हमेशा यही चाहता है कि एक थर्ड पार्टी को बीच में लाओ, मध्यस्थता करा दो. पाकिस्तानियों ने जम्मू और कश्मीर में हमला किया, उसके बाद यूएन को बीच में लाया गया. साल 1965 में सोवियत यूनियन को लाया गया."
"लेकिन साल 1971 में भारत ने कहा कि हम नहीं चाहते कि एक थर्ड पार्टी को बीच में लाया जाए, जो होना है हमारे बीच में होना है."
हैपीमोन जैकब का मानना है, "इस बार भारत की रणनीति रही है कि हम इंटरनेशनल ओपिनियन की परवाह किए बिना जवाब दें, क्योंकि हमला भारत पर हुआ है. इसीलिए भारत को लगता है कि उसका यह अधिकार है कि वो स्ट्राइक करे और वह कर रहा है.
मौजूदा भारत- पाकिस्तान संघर्ष में यह भी देखने को मिला है कि भारत ने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के अन्य इलाकों में भी हमले किए हैं. क्या इससे वो पाकिस्तान को कोई संदेश देना चाहता है?
प्रोफ़ेसर जैकब कहते हैं, "मेरा मानना है कि इसमें संदेश यह है कि जब सबसे पहले 2016 में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तो वो पीओके में, लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार एक टेस्ट केस था. फिर 2019 हमने इसे थोड़ा आगे बढ़ाया और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में अटैक किया."
प्रोफ़ेसर जैकब के मुताबिक़, "अभी जो अटैक हुआ है, वो पाकिस्तान में पंजाब के अंदर, यानी हार्टलैंड ऑफ पाकिस्तान में हुआ है. इसका मतलब यह है कि भारत के पास काफ़ी विकल्प हैं. अगर भविष्य में भारत के ऊपर आतंकवादी हमला होता है तो मेरा मानना है कि भारत के पास इसके बदले कार्रवाई के लिए कई विकल्प होंगे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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