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ट्रंप की जीत और कमला हैरिस की हार पर अरब देशों के मीडिया में तीखी बहस

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Getty Images कमला हैरिस की हार को अरब के मीडिया में उनकी नीति का फल बताया जा रहा है

अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत को लेकर अरब के देशों के मीडिया में काफ़ी कुछ कहा जा रहा है.

इसराइल-हमास जंग की वजह से अस्थिर हो चुके मध्य-पूर्व पर ट्रंप की जीत के पड़ने वाले असर को लेकर कयासों का बाज़ार गर्म है.

पूरी दुनिया में इस बात पर बहस हो रही है कि क्या ट्रंप इसराइल और हमास के बीच संघर्ष को ख़त्म करा पाएंगे या इसराइल के प्रति उनके समर्थन की नीति से हालात और ख़राब होंगे.

पूरी दुनिया के मीडिया में इस मुद्दे पर विश्लेषण हो रहे हैं लेकिन आइए देखते हैं कि अरब का मीडिया क्या कह रहा है?

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'ट्रंप और नेतन्याहू एक जैसे' image Getty Images अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइल को भरपूर समर्थन दिया था.

ग़ज़ा से विस्थापित 43 साल के जराद नाम के शख़्स ने अल जज़ीरा से कहा कि उन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि ट्रंप के आने से इसराइल की नृशंसता और बढ़ेगी क्योंकि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से उनकी काफ़ी क़रीबी है. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने नेतन्याहू से दोस्ती दिखाई थी.

70 साल की डॉक्टर हिलाल ने कटाक्ष करते हुए कहा, ''ट्रंप और बिन्यामिन नेतन्याहू एक जैसे हैं. हमारी मुसीबत बढ़ाने के लिए बिन्यामिन पहले ही मौजूद हैं और अब ट्रंप भी आ गए हैं.''

ग़ज़ा स्थित रिसर्च संस्था पेलिस्तिनियन प्लानिंग सेंटर में रिसर्चर जेहाद मलाका ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इसराइल को समर्थन देने के मामले में ट्रंप का रुख़ बाइडन प्रशासन से अलग होगा.

उन्होंने अल-जज़ीरा से कहा, ''दोनों एक जैसे हैं. ट्रंप धारदार हथियार इस्तेमाल करते हैं जबकि बाइडन और डेमोक्रेट्स मीठी छुरी चलाते हैं.''

ट्रंप और हैरिस को लोगों की जान की परवाह नहीं - 'तेहरान टाइम्स' image MAHMUD HAMS/GETTY IMAGES इसराइल पिछले साल से अधिक समय से ग़ज़ा में बमबारी कर रहा है

ईरान के अख़बार ने लिखा है अमेरिका के लोग टैक्सपेयर्स का पैसा इसराइल-हमास की जंग में खर्च करने से नाराज़ हैं.

अख़बार लिखता है, ''अमेरिका इसराइल को अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक 18 अरब डॉलर की सैन्य मदद दे चुका है. इसराइल के हमले में 43 हजार फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है. इसराइल लेबनान में तीन हजारों लोगों को मार चुका है.''

'तेहरान टाइम्स' लिखता है कि ट्रंप ने ग़ज़ा संघर्ष ख़त्म कराने का वादा किया था. लेकिन अब ये साफ हो गया है कि ऐसा वो इसलिए कह रहे थे कि कमला हैरिस के वोट रिपब्लिकन पार्टी को मिल सके.

अख़बार ने लिखा है, ''ट्रंप और हैरिस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों को इसराइल की ओर से मारे जा रहे फल़स्तीनियों और लेबनानी लोगों की जान की कोई परवाह नहीं है. हैरिस की हार ये दिखाती है कि अमेरिकी लोग उनके देश की ओर से इसराइल को दी जा रही मदद को लेकर कितने हताश हैं.''

ने लिखा है कि भले ही ट्रंप ने ग़ज़ा युद्ध खत्म कराने का वादा किया है लेकिन इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से उनकी दोस्ती को देखते हुए ये दूर की कौड़ी लग रहा है.

लगता नहीं है कि इस वादे का भरोसा कर ट्रंप को वोट देने वाले लोगों की ये मंशा पूरी होगी.

इस थिअरी में विश्वास करने वालों का कहना है कि ट्रंप ने ही यरूशलम को इसराइल की राजधानी क़रार दिया था और अमेरिका के दूतावास को तेल अवीव से यहां शिफ्ट करा दिया था.

'अरब न्यूज़' लिखता है कि मध्य-पूर्व में ट्रंप की नीतियों से सबसे ज्यादा चिंतित होने की ज़रूरत किसी को है तो वो है ईरान.

अख़बार लिखता है कि अपने चुनावी अभियान के दौरान ट्रंप ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की संभावनाओं पर बात की थी. उनका कहना था कि अमेरिका पर पहले उन पर हमला करना चाहिए था और फिर बात करनी चाहिए थी.

अख़बार ने लिखा है कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में ईरान और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ ज़्यादा कड़ा रुख़ अख़्तियार कर सकते हैं.

हालांकि सऊदी अरब के अख़बार 'अल-अरबिया' के साथ इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा था कि ईरान भी अब्राहम समझौते में शामिल हो सकता है. लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि ये कैसे होगा.

'कमला को अपने कर्मों का फल मिल रहा है' image Getty Images कमला हैरिस (फ़ाइल फ़ोटो)

ने कमला हैरिस की हार पर लिखा है कि उन्हें अपने कर्मों का फल मिल रहा है. ग़ज़ा में शांति लाने के सवाल को दरकिनार करना उन्हें महंगा पड़ा है.

इसने लिखा है कि हैरिस फ़लस्तीनियों से सामान्य सहानुभूति भी नहीं दिखा पाईं.

फ़लस्तीन के मुद्दे पर होने वाले हर प्रदर्शन पर उन्होंने सख़्ती दिखाई. लेफ्ट के हर किसी से वो चाह रही हैं कि वो अपने घुटने पर झुक जाए.

‘द न्यू अरब’ लिखता है कि हैरिस को ग़लतफ़हमी थी. पिछले एक साल से डेमोक्रेटिक पार्टी इसराइल के हमलों का लगातार समर्थन कर रही थी.

उसके बाद भी हैरिस को लग रहा था कि लिबरल वोट उनकी पार्टी को मिलेंगे.

अख़बार लिखता है, ''छात्र पूरे अमेरिका में इसराइल का विरोध कर रहे थे और पुलिस की क्रूरता झेल रहे थे. बड़े सेलिब्रिटीज, एकेडेमिक्स और मशहूर लोग अपने जोखिम पर इसराइल के हमलों की निंदा कर रहे थे. लेकिन हैरिस की सरकार इसराइल की सैन्य मदद जारी रखे हुई थी. इसके बावजूद हैरिस को लग रहा था लिबरल वोटर उनकी पार्टी को वोट देंगे. दरअसल हैरिस ने जो किया उसका उन्हें फल मिल गया.''

न्यूज़ एजेंसी एएफपी ने ट्रंप की जीत का मध्यपूर्व पर पड़ने वाले असर पर फल़स्तीन और इसराइल में कई लोगों से बातचीत की.

इस मामले में लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है. ग़ज़ा के कुछ विस्थापितों को लगता है कि ट्रंप युद्ध रुकवा सकते हैं.

उनका कहना है कि ट्रंप एक कारोबारी शख्स़ हैं और उनका ज्यादा ध्यान आर्थिक मुद्दों पर रहता है. कुछ लोगों का कहना है कि ट्रंप को युद्ध ख़त्म कराना चाहिए क्योकि अब ये फल़स्तीन के लोगों के बर्दाश्त के बाहर हो गया है.

एजेंसी के मुताबिक़ कुछ इसराइली भी चाहते हैं कि ये युद्ध खत्म हो. हालांकि कुछ ने ये भी कहा कि ट्रंप और नेतन्याहू की दोस्ती को देखते हुए ये मुश्किल लगता है. लेकिन जिन लोगों से बात की गई उनमें से ज़्यादातर चाहते हैं कि जल्द से जल्द शांति बहाल होनी चाहिए.

एजेंसी का कहना है कि लेबनान और ईरान में ट्रंप की नीतियों को लेकर आशंका है. उन्हें लगता कि युद्ध रोकने का ट्रंप का वादा सिर्फ खोखली बाते हैं.

वह लड़ाई नहीं रुकवा पाएंगे. उल्टे वो इसराइल की मदद करते दिख सकते हैं. हालांकि लोगों को लगता है कि इस समस्या का हल बातचीत है, युद्ध नहीं.

एजेंसी के मुताबिक़ ईरान के एक शख़्स ने कहा कि ट्रंप उनके देश के ख़िलाफ़ प्रतिबंध और कड़े कर सकते हैं. इससे महंगाई और बढ़ेगी और लोगों की मुश्किलों में इजाफा होगा. अगर इसराइल ईरान के ख़िलाफ़ दुश्मनी दिखाता है तो ट्रंप उसका समर्थन ही करेंगे..

कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिका और इसराइल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. ईरान से उनका कोई लगाव नहीं है. इसलिए इसराइल का रुख़ ईरान के प्रति बदल जाएगा ये संभव नहीं है.

सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद सलमान ने दी ट्रंप को बधाई image Reuters माना जाता है डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद सलमान के बीच अच्छा तालमेल है

ने मध्य-पूर्व देशों के नेताओं की ओर जीत पर ट्रंप को भेजे संदेशों का ज़िक्र किया है.

अख़बार के मुताबिक़ सऊदी अरब के किंग सलमान और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ट्रंप को बधाई संदेश भेजकर दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने की इच्छा जताई है.

मोहम्मद बिन सलमान ने ट्रंप को फोन करके बधाई दी. मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की समृद्धि और बढ़ेगी.

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का ही किया था.

संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाह्यन ट्रंप और उनके रनिंग मेंट जेडी वेन्स को बधाई दी है. उन्होंने लिखा है कि यूएई ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका से अपने संबंध को और मज़बूत बनाने के प्रति काफी उत्सुक है.

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह सीसी ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन मध्य-पूर्व में शांति बहाली की कोशिश करेगा.

अख़बार के मुताबिक़ जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह द्वितीय ने कहा है कि ट्रंप को मध्य-पूर्व में शांति के लिए प्रयास करने चाहिए.

ग़जा संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभा चुके क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद अल-थानी ने मध्य-पूर्व और पूरी दुनिया में शांति बहाली के लिए ट्रंप से मदद की अपील की है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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