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बैंक, बस और ट्रेन पर पड़ सकता है 'भारत बंद' का असर, ट्रेड यूनियंस ने क्यों बुलाई हड़ताल

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Getty Images देश की 10 प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने 9 जुलाई को देशव्यापी आम हड़ताल बुलाई है

भारत की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और फ़ेडरेशनों के फ़ोरम ने 9 जुलाई यानी बुधवार को देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान किया है.

आम हड़ताल से बैंक और परिवहन समेत कई सार्वजनिक सेवाओं पर असर पड़ने की आशंका है.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने चार लेबर कोड्स यानी श्रम संहिताओं को तुरंत रद्द किए जाने की मांग की है. इन संहिताओं को साल 2020 में संसद में तीन कृषि क़ानूनों के तुरंत बाद पास किया गया था.

फ़ोरम ने पहले आम हड़ताल की तारीख़ 20 मई तय की थी लेकिन भारत प्रशासित कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए चरमपंथी हमले के बाद इसे 9 जुलाई के लिए टाल दिया गया था.

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संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने एक बयान जारी कर आम हड़ताल को समर्थन दिया है और एमएसपी पर ख़रीद की गारंटी देने की मांग सरकार से की है.

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क्या हैं मांगें? image Getty Images यूनियनों ने केंद्र सरकार के सामने 17 सूत्री मांगें पेश की हैं

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार के सामने 17 मांगों की एक सूची रखी है.

चार लेबर कोड्स को रद्द करने के अलावा इन मांगों में इंडियन लेबर कॉन्फ़्रेंस (आईएलसी) को तत्काल आयोजित करने की मांग की गई है. यह एक त्रिपक्षीय निकाय है जिसकी पिछली बैठक नौ साल पहले 2015 में आयोजित की गई थी.

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि केंद्रीय श्रम क़ानूनों में चार लेबर कोड्स को बिना आईएलसी में चर्चा के ही पास कर दिया गया.

इन लेबर कोड्स में मुख्य रूप से 29 केंद्रीय श्रम क़ानूनों को समेटा गया है.

ट्रेड यूनियनों की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं-

  • चार श्रम संहिताओं को रद्द किया जाए
  • इंडियन लेबर कॉन्फ़्रेंस तुरंत आयोजित की जाए
  • न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रति माह किया जाए
  • 41 डिफ़ेंस ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्रियों के निगमीकरण को वापस लिया जाए
  • ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को बहाल किया जाए
  • निर्माण मज़दूरों के लिए कल्याण के लिए जमा 38,000 करोड़ रुपये तुरंत जारी किए जाएं
  • सभी कृषि उत्पादों पर सी-2+50% के फ़ार्मूले से एमएसपी लागू हो
  • ऑक्यूपेशनल सेफ़्टी और हेल्थ के तहत सभी फ़ैक्ट्रियों की जांच शुरू की जाए
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हड़ताल से प्रभावित होने वाले सेक्टर image Getty Images सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक यूनियनें इस हड़ताल में शामिल रहेंगी

पिछली हड़ताल साल 2024 में हुई थी. ट्रेड यूनियनों के फ़ोरम की ओर से दावा किया गया था कि पूरे देश में 22 करोड़ श्रमिक और कर्मचारियों ने इसमें हिस्सा लिया था.

सीटू के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन ने बीबीसी से कहा कि इस बार भी हड़ताल में इससे कुछ अधिक संख्या में लोगों के शामिल होने का अनुमान है.

उन्होंने दावा किया कि बैंकिंग सेवाएं, बीमा क्षेत्र, कोयला और स्टील क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयां, राज्य परिवहन निगम की सेवाएं, आंगनबाड़ी, राज्य कर्मचारी और असंगठित क्षेत्र के बहुत सारे कर्मचारी इस हड़ताल में हिस्सा लेंगे.

उन्होंने कहा कि हड़ताल के दौरान प्रदर्शन और रेल रोको-रास्ता रोक अभियान चलाएंगे. इस हड़ताल में रेलवे की यूनियनें शामिल नहीं हैं लेकिन उन्होंने अपना समर्थन दिया है.

हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) ने आम हड़ताल से खुद को अलग रखा है.

बीएमएस के राष्ट्रीय संगठन सचिव सुरेंद्रन ने बीबीसी को बताया, "इस हड़ताल में हम शामिल नहीं हैं और इसमें बीएमएस से संबद्ध यूनियनें और उनसे जुड़े श्रमिक हिस्सा नहीं लेंगे."

उन्होंने कहा कि देश भर में क़रीब 6,300 यूनियनें बीएमएस से संबद्ध हैं और क़रीब डेढ़ करोड़ मज़दूर सदस्य हैं.

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श्रम क़ानूनों में बदलाव है मुख्य मुद्दा image Getty Images

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि चार लेबर कोड्स के ज़रिए जिन 29 श्रम क़ानूनों को बदला गया है वो कॉरपोरेट सेक्टर को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किया गया है.

सीटू के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन ने कहा कि केंद्र सरकार ने श्रम क़ानूनों को पूरी तरह बदलते हुए 29 श्रम क़ानूनों को रद्द कर दिया है और उनकी जगह चार श्रम संहिताएं लाई गई हैं.

उन्होंने कहा, "इन संहिताओं में सरकार ने कार्यस्थल पर कर्मचारियों के अधिकारों और ट्रेड यूनियन के संगठित करने के अधिकारों में भारी कटौती की है और साथ ही सरकारी अधिकारियों के अधिकारों को बेतहाशा बढ़ा दिया है."

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने बीबीसी से कहा कि सरकार केंद्रीय श्रम क़ानूनों में बदलाव कर चुकी है और राज्यों के मार्फ़त इसे नोटिफ़ाई करने की कोशिश कर रही है.

उन्होंने बताया, "लेबर कोड्स के तहत राज्य सरकारों को फ़्रेमवर्क बनाना है और उसे नोटिफ़ाई करना है. अबतक उन्हीं चंद राज्यों में नए श्रम क़ानून नोटिफ़ाई किए गए हैं जहां बीजेपी की सरकारें हैं, जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश आदि."

ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा है कि हड़ताल की नोटिस के बाद अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला है.

अमरजीत कौर ने बताया कि 'केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया की ओर से ट्रेड यूनियन नेताओं से मिलने का संदेश आया था लेकिन सामूहिक बैठक और एजेंडे को लेकर स्पष्टता न होने से यह बैठक नहीं हो पाई है.'

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एक दिन की आम हड़ताल, क्या बदलेगा? image Getty Images ट्रेड यूनियन नेताओं का दावा है कि हड़ताल में असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी भी हिस्सा लेंगे

आम हड़ताल को लेकर ये भी सवाल उठते रहे हैं कि एक दिन की रस्मी कार्रवाई से क्या बदलेगा. खुद कुछ नेताओं ने स्वीकार किया कि निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियां चलती रहेंगी.

इस पर तपन सेन कहते हैं, "यह एक आम सवाल है लेकिन ये समझने की ज़रूरत है कि ये एक दिन की हड़ताल नहीं है. उद्योग में छोटे बड़े संघर्ष चलते रहते हैं जिनकी परिणति आम हड़ताल में होती है."

अमरजीत कौर ने कहा कि लगातार प्रदर्शनों की वजह से अभी तक सरकार चार श्रम संहिताओं को पूरे देश में लागू नहीं कर पाई है.

उन्होंने कहा, "ट्रेड यूनियनें 2020 से ही इन श्रम संहिताओं का विरोध कर रही हैं और तबसे तीन बार आम हड़ताल बुलाई जा चुकी है- 2020, 2022 और 2024 में. ये चौथी आम हड़ताल है."

लेकिन तपन सेन का कहना है, "सरकार श्रम क़ानूनों को लेकर आक्रामक नीति अपना रही है और सरकार कोई परवाह ही नहीं कर रही है."

बीएमएस नहीं है इस हड़ताल में शामिल image Getty Images भारतीय मज़दूर संघ इस हड़ताल में शामिल नहीं है

हालांकि सभी ट्रेड यूनियनें श्रम संहिताओं का विरोध करती हैं ऐसा नहीं है. बीएमएस ने कुछ श्रम संहिताओं को मज़दूरों के लिए बेहतर बताया है.

बीएमएस के राष्ट्रीय संगठन सचिव सुरेंद्रन ने कहा, "हमने सरकार से कहा है कि वेज कोड और सोशल सिक्युरिटी कोड बहुत अच्छा है. ये श्रमिकों के पक्ष में है."

"हमने सरकार से इन्हें लागू करने का आग्रह किया है. लेकिन कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ कोड (ओएसएच) में हमारी बहुत सारी आपत्तियां हैं और इन पर सरकार को हमारा समर्थन नहीं है."

उन्होंने कहा, "त्रिपक्षीय इंडियन लेबर कॉन्फ़्रेंस जल्द से जल्द आयोजित किए जाने के लिए सरकार से बार बार कहा गया है."

सुरेंद्रन ने कहा कि सरकार ने इस बारे में जल्द क़दम उठाने का आश्वासन दिया है.

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लेबर कोड पर क्यों है इतना विवाद? image Getty Images

जब सरकार लेबर कोड बिल लेकर आ रही थी तब तत्कालीन श्रम और रोज़गार मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने कहा था, "इस बिल से 50 करोड़ श्रमिकों को फ़ायदा मिलेगा. संगठित क्षेत्र के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भी इसका फ़ायदा मिलेगा. अबतक 60 प्रतिशत श्रमिक पुराने क़ानून के दायरे में नहीं थे."

लेकिन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार पर श्रमिकों और ट्रेड यूनियनों के अधिकारों में कटौती करने के आरोप लगाए हैं.

ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि श्रम संहिताओं को बिना ट्रेड यूनियनों से चर्चा किए और इंडियन लेबर कॉन्फ़्रेंस में बहस किए पास कर दिया गया.

अमरजीत कौर ने कहा कि जब तीन कृषि क़ानून पास किए गए थे उसके बाद सदन में वॉकआउट हो गया था और उसी दौरान बिना बहस के श्रम संहिताओं को भी पास कर दिया गया. इस पर कोई चर्चा भी नहीं हुई.

उनके अनुसार, "न तो ट्रेड यूनियनों से चर्चा की गई, न संसद में चर्चा हुई और न ही इंडियन लेबर कॉन्फ़्रेंस में चर्चा हुई."

हालांकि तब संतोष गंगवार ने कहा था, "कोड पर भी त्रिपक्षीय वार्ता हुई थी, साथ ही वेज कोड का ड्राफ्ट 21 मार्च 2015 से 20 अप्रैल 2015 तक मंत्रालय की वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन में डाला गया था. जिससे आम लोगों के सुझावों को भी बिल में शामिल किया गया."

image Getty Images कहा जा रहा है कि लेबर कोड्स में फ़ैक्ट्रियों की जांच का प्रावधान हटा दिया गया है

अमरजीत कौर ने कहा कि इन लेबर कोड्स में फ़ैक्ट्रियों की जांच का प्रावधान हटा दिया गया है.

उन्होंने कहा, "श्रम संहिताओं में ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रेशन मुश्किल बना दिया गया है. यूनियन के पंजीकरण रद्द करना इतना सामान्य कर दिया गया है कि कोई रजिस्ट्रार भी मनमर्ज़ी से ऐसा कर सकता है. हड़ताल को असंभव बना दिया गया है क्योंकि इसमें कहा गया है कि जिस दिन हड़ताल का नोटिस दिया जाएगा उसी दिन से पंजीकरण को रद्द करने की समयावधि की शुरुआत मानी जाएगी और इस दौरान हड़ताल ग़ैरक़ानूनी होगी."

"साथ ही वेतन की परिभाषा बदल दी गई है जिससे टेक होम सैलरी कम हो जाएगी. ऑक्युपेशनल सेफ़्टी एंड हेल्थ कोड के तहत फ़ैक्ट्री जांच को बंद किया जा रहा है जोकि अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) कन्वेंशन का उल्लंघन है. इसी वजह से फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाएं बढ़ गई हैं."

उन्होंने कहा कि काम के घंटे बढ़ाकर 12 घंटे तक कर दिए गए हैं.

असल में श्रम क़ानूनों के सेक्शन 25(1) में कार्य दिवस आठ घंटे तक नियत है लेकिन 25 (1)बी में कहा गया है कि नियोक्ता ज़रूरत पड़ने पर कर्मचारी से 12 घंटे तक काम करा सकता है.

इसी तरह सप्ताह में छह दिन से अधिक काम कराने की भी छूट दी गई है और इसके बदले दो महीने के अंदर छुट्टी देने का प्रावधान किया गया है.

नए प्रावधानों में ओवर टाइम को तीन महीने में 50 घंटे से बढ़ाकर 125 घंटे कर दिया गया है और इसका पूरा अधिकार नियोक्ता को दिया गया है.

महिलाओं को अपनी इच्छा से नाइट शिफ़्ट करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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