जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई की तो अज़रबैजान ने इसकी निंदा की.
तुर्की ने भी पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया. वहीं, दुनिया के अधिकतर देशों ने भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने की अपील की.
इसके बाद से ही भारत में पर कई लोगों ने अज़रबैजान और तुर्की का बहिष्कार करने की बात कही.
वहीं, और बीजेपी के बीच अज़रबैजान के साथ व्यापार और पर्यटन के बहिष्कार को लेकर बयानबाजी भी हुई.
वैसे तुर्की तो पिछले कई साल से कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देता रहा है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि अज़रबैजान ने आख़िर पाकिस्तान का साथ क्यों दिया? आइए जानते हैं अज़रबैजान कहां है और भारत के साथ उसके रिश्ते कैसे हैं?

अज़रबैजान दक्षिण कॉकेशस क्षेत्र में स्थित है. यह ईरान के पड़ोस में है. सोवियत संघ के विघटन के बाद बने देशों में से अज़रबैजान भी एक था.
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्ष के दौरान अज़रबैजान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर , "हम उन सैन्य हमलों की निंदा करते हैं, जिसमें पाकिस्तान में कई निर्दोष नागरिकों की जान गई और कई लोग घायल हुए हैं."
"पाकिस्तान के लोगों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए, हम निर्दोष पीड़ितों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं."
अज़रबैजान ने पाकिस्तान का साथ क्यों दिया?जेएनयू में सेंटर फॉर रशियन एंड एशियन सेंट्रल स्टडीज में प्रोफ़ेसर संजय कुमार पांडे अज़रबैजान के पाकिस्तान के प्रति समर्थन के पीछे अज़रबैजान, पाकिस्तान और तुर्की के आपसी रिश्ते को बताते हैं.
प्रोफ़ेसर संजय पांडे बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "अज़रबैजान तुर्की का बेहद क़रीबी है. वहां कहा भी जाता है कि अज़रबैजान और तुर्की 'वन नेशन, टू स्टेट' हैं. कभी-कभी तुर्की, अज़रबैजान और पाकिस्तान के लिए भी ये बात कही जाती है."
"तुर्की पिछले काफ़ी समय से पाकिस्तान का समर्थक रहा है. रेचेप तैय्यप अर्दोआन और उनकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) एक तरह से सॉफ्ट इस्लामिज्म़ पर चल रही है. अर्दोआन के प्रभाव बढ़ने के साथ ये बढ़ा है."
संजय पांडे आगे कहते हैं, "तुर्की की पारंपरिक नीति मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क वाली थी, जिसमें वो सेक्युलरिज़्म का एक बड़ा ही कड़ा वर्ज़न अपनाते थे. उन्होंने धर्म को को स्टेट से पूरी तरह दूर रखा और तुर्की को आधुनिक किया, लेकिन 80 साल बाद और इस शताब्दी की शुरुआत के दशक में आम लोगों की प्रतिक्रिया इस नीति के ख़िलाफ़ रही."
विशेषज्ञों के मुताबिक़ अर्दोआन के शासनकाल के दौरान वहां लोगों का मज़हब को लेकर रुझान बढ़ने लगा और मुस्लिम बहुल देशों के प्रति तुर्की का सॉफ़्ट कॉर्नर यानी नरम रुख़ रहने लगा.
संजय पांडे बताते हैं कि यही कारण है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने मशहूर म्यूज़ियम हागिया सोफ़िया को मस्जिद में बदल दिया.
हागिया सोफ़िया म्यूज़ियम असल में एक चर्च हुआ करता था, जिसे छठी सदी में बैज़ेंटाइन सम्राट जस्टिनियन ने बनवाया था.
वो दूसरा कारण अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच के विवाद को बताते हैं.
संजय पांडे बताते हैं कि अज़रबैजान-आर्मीनिया के बीच विवाद काफ़ी पुराना है. सोवियत संघ के विघटन के बाद आर्मीनिया को पाकिस्तान ने एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी है.
वो कहते हैं, "अज़रबैजान-आर्मीनिया के मामले में पाकिस्तान की नीति एकतरफ़ा रही है. पाकिस्तान पूरी तरह से अज़रबैजान का नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र के मुद्दे पर समर्थन करता रहा है."
अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र को लेकर विवाद चल रहा है. इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के लिए दोनों देश कई बार आमने-सामने आ चुके हैं.
हालांकि पाकिस्तान तो खुलकर इस मुद्दे पर अज़रबैजान का साथ देता रहा है, लेकिन भारत ने अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच हुए तनाव में सधा और संतुलित रवैया अपनाया है.
सितंबर 2020 में भी अज़रबैजान-आर्मीनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र में हुए संघर्ष के दौरान भारतीय विदेश मंत्रालय ने कर सभी पक्षों से तत्काल लड़ाई बंद करने और संयम बरतने की अपील की थी.
भारत ने सोवियत संघ के विघटन के बाद अज़रबैजान और आर्मीनिया को मान्यता भी दी है. लेकिन अज़रबैजान के पाकिस्तान का साथ देने के बाद भारत से इसके पुराने रिश्तों पर भी चर्चा हो रही है.
ये भी पढ़ें-अज़रबैजान के बाकू में स्थित भारतीय दूतावास का कहना है कि हाल के सालों में भारत और अज़रबैजान के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है.
दूतावास के , भारत और अज़रबैजान के बीच 2005 में द्विपक्षीय व्यापार 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर था वो साल 2023 में बढ़कर 1.435 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है.
मौजूदा समय में भारत अज़रबैजान का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. साल 2023 में अज़रबैजान ने भारत को 1.235 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत ने अज़रबैजान को 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया.
भारत और अज़रबैजान के बीच द्विपक्षीय व्यापार के मामले में अज़रबैजान फ़ायदे में हैं.
इसके अलावा साल 2023 में में भारत से 1 लाख़ 15 हज़ार से ज़्यादा पर्यटक गए थे. ये साल 2022 की तुलना में दोगुना है.
वही अज़रबैजान में भारतीय समुदाय के लोगों की संख्या डेढ़ हज़ार से ज़्यादा है.
दरअसल, भारत और अज़रबैजान के द्विपक्षीय व्यापार और पर्यटन सहित अन्य चीज़ों की इस कारण भी चर्चा हो रही है क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस ने इस मामले में एक दूसरे से कई सवाल किए हैं.
कांग्रेस ने 14 मई को बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय के उस बयान पर पलटवार किया, जिसमें मालवीय ने कहा था, ''देश तुर्की और अज़रबैजान द्वारा आतंकी राष्ट्र पाकिस्तान को दिए गए समर्थन से क्रोधित है. इन देशों के साथ व्यापार और पर्यटन का बहिष्कार करने की मांग बढ़ रही है और लोग एकजुटता दिखा रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ख़ुद को लोगों की व्यापक भावना के साथ नहीं जोड़ पा रही है."
इसके जवाब में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने , "किसी भी देश के साथ संबंध रखने या नहीं रखने का फ़ैसला सरकार को लेना है, हमें (विपक्ष) नहीं."
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