राजस्थान के सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी से वन विभाग उत्साहित है, लेकिन समान जीन पूल की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। रणथंभौर में एक तिहाई से अधिक बाघ और बाघिन एक ही जीन पूल से हैं, जिससे उनकी शारीरिक क्षमता, शिकार करने की क्षमता और उम्र पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है। वन विभाग ने अब तक अंतरराज्यीय स्थानांतरण को लेकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड के वन अधिकारियों को पत्र लिखा है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आगे क्या है रास्ता
रणथंभौर में बाघों की आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने के लिए तत्काल अंतरराज्यीय स्थानांतरण और वैज्ञानिक उपायों की जरूरत है। वन विभाग को इस दिशा में सक्रियता दिखानी होगी, ताकि बाघों का भविष्य सुरक्षित रहे।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज, बेंगलुरु ने 20 से अधिक बाघ रिजर्वों का दौरा कर बाघों के नमूनों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में समान जीन पूल की समस्या राजस्थान में सबसे गंभीर पाई गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, एक ही जीन पूल वाले बाघ शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, उनकी शिकार करने और भागने की क्षमता प्रभावित होती है और उनके बच्चों की उम्र भी कम हो सकती है। यह समस्या बाघों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए बड़ा खतरा है।
अंतरराज्यीय स्थानांतरण योजना अधूरी
एक ही जीन पूल की समस्या से निपटने के लिए वन विभाग ने 2019-20 में अंतरराज्यीय स्थानांतरण की योजना बनाई थी। इसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से बाघ और बाघिन लाने की चर्चा थी, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई। स्थिति अभी भी जस की तस है।
मप्र से अनुमति मिली, लेकिन मामला अटका हुआ है
एक ही जीन पूल की समस्या को लेकर अंतरराज्यीय स्थानांतरण ही एकमात्र विकल्प है। इस दिशा में भी काम किया जा रहा है। इससे पहले मप्र से बाघ और बाघिन को शिफ्ट करने की अनुमति मिली थी, लेकिन एनटीसीए की आपत्ति के कारण मामला अटका हुआ है।
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