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सालभर पुराने रजिस्टर में दर्ज कर दी 1969 की जमीन! राजस्थान में 300 करोड़ के जमीन घोटाले का पर्दाफाश, जानिए क्या है पूरा मामला

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शहर में जमीनों की धोखाधड़ी का बड़ा खेल सामने आया है। खास बात यह है कि ये पट्टे 55 साल पुराने हैं। लेकिन जिस रजिस्टर में इनकी एंट्री है, वह एक साल पुराना है। ये सभी पट्टे यूआईटी से भी पहले के हैं, जब नगर सुधार समिति शहर की जिम्मेदारी संभालती थी। उस समय रजिस्टर में पट्टों की एंट्री की जाती थी। 1970 के सभी रजिस्टर जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं, लेकिन जिस रजिस्टर में 40 पट्टे दर्ज थे, उसमें नए पन्ने और स्याही लगी है। यहां तक कि हस्ताक्षरों के ऊपर हस्ताक्षर भी किए गए। मिसल पट्टों में दर्ज दस्तावेजों की चेन बीडीए के दस्तावेजों से मेल नहीं खा रही है। धोखाधड़ी वाले इन भूखंडों की कीमत 300 करोड़ रुपए से ज्यादा आंकी जा रही है। समिति की अनुशंसा पर बीडीए ने एफआईआर दर्ज कराई है।

यह मामला अप्रैल में बीडीए के संज्ञान में आया था। इसके बाद बीडीए ने कलेक्टर के समक्ष सारे तथ्य रखे। कलेक्टर ने बीडीए सचिव कुलराज मीना, निगम उपायुक्त यशपाल आहूजा, एडीएम सिटी रमेश देव, प्रोग्रामर यतिन सोइन, अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी अश्विनी कुमार आचार्य और अभिलेखागार विभाग के निदेशक नितिन गोयल की कमेटी बनाई थी। कमेटी को रजिस्टर, जमीन और पट्टों की सत्यता की जांच करने को कहा गया था।

30 जून को कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर बीडीए आयुक्त और कलेक्टर को सौंप दी थी। कमेटी ने साफ कहा था कि 1970 से पहले के रजिस्टर में दर्ज पट्टों का रजिस्टर इतना नया नहीं हो सकता। न ही राइटिंग नई हो सकती है। रजिस्टर पर सीरियल नंबर नहीं है। कई जगह सील नहीं है। बीडीए के पास इन 40 पट्टों की मिसल यानी चेन है, लेकिन वह रजिस्टर में दर्ज मिसल से मेल नहीं खाती। ऐसे में ये पट्टे फर्जी हैं। इस रजिस्टर से पट्टों की फोरेंसिक जांच होनी चाहिए। इसके लिए एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य है।

अतिक्रमण हटाते समय मिला अनियमितता का सुराग

यह बड़ा खेल एक मामूली अतिक्रमण हटाते समय शुरू हुआ। दरअसल, बीडीए की एक टीम शहर में एक अतिक्रमण हटाने पहुंची। वहां काबिज एक व्यक्ति ने सीईसी यानी नगर सुधार समिति के नाम से एक पट्टा दिखाया जो यूआईटी के गठन से पहले का है। इतना पुराना पट्टा देखकर बीडीए हैरान रह गया। टीम ने अधिकारियों को सूचना दी।

अधिकारियों ने जब पट्टे की जांच की तो फर्जी रजिस्टर में उसका नाम देखा। फिर उन्होंने उस रजिस्टर में दर्ज सभी पट्टे देखे। तब लगा कि पूरा रजिस्टर ही फर्जी बना हुआ है। रजिस्टर करीब 65 से 70 साल पुराना है और उसका पेज नया है। स्याही भी ताजा है। सीईसी के विकास अधिकारी के हस्ताक्षर के ऊपर हस्ताक्षर। लिखावट भी नई है। फिर मामला कलेक्टर को बताया गया और उसके बाद कमेटी ने एक-एक कर सारी परतें खोलीं।

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